+बहुसंख्यक ध्रुवीकरण की राजनीति में अपनी नई छवि बनाने में जुटी कांग्रेस, भक्तों को चिंता हिंदुओं के अपमान से अधिक हिन्दू ध्रुवीकरण की सियासी मंडी में एक छत्र ठेकेदारी को चुनौती मिलने की।
आलेख/ राकेश शान्तिदूत
सम्पादक मेट्रो एनकाउंटर, रोजाना अखबार
लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी का पहला भाषण हंगामाखेज रहा है। अपेक्षा के विपरीत राहुल गांधी के भाषण में ऐसी ताकत दिखाई दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को इस पर तल्खी भरी प्रतिक्रिया देनी पड़ी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह भी सुरक्ष पंक्ति के आक्रमक योद्धा बने।। अपनी भारत जोड़ो यात्रा से लेकर कांग्रेस को लोकसभा में सौ के आंकड़े के निकट लेकर जाने और फिर प्रतिपक्ष का नेता चुने जाने पर अपने प्रथम भाषण तक राहुल गांधी ने कई ऎसे मिथक या धारणाएं तोड़ी है जो पिछले एक दशक के दौरान सोशल मीडिया पर उनके विरोधियों ने व्यापक स्तर तक सृजित की थी।
राहुल के भाषण को लेकर सत्तारूढ़ एन डी ए के प्रमुख घटक भाजपा के स्टिकर वाले सांसदों से लेकर मोदी भक्तों की एक बड़ी फौज तिलमिलाई हुई है और वह पूरी आक्रमकता के साथ देश के राजनीतिक परिदृश्य पर धार्मिक ध्रुवीकरण की अपनी मुहिम को शिखर पर ले जाने में जुटी हुई है। लोकसभा चुनाव में मोदीं की जमीन बुरी तरह से खिसकने के बाद आगामी महीनों में बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव इस की वजह हो सकते हैं। भारतीय महापुरुषों के हवाले से उनके धर्मदर्शन की सटीक ,सही और वास्तविक परिभाषा को अत्यंत प्रभावशाली तरीके के साथ राहुल ने भारतीय राजनीति में हिंदुओं की ठेकेदारों का दावा करती आ रही ताकतों को हिंसक और नफ़रत फैलाने वाले बताते हुए, उनके इस कृत्य को हिन्दु दर्शन सिद्धान्त के विपरीत,पुख्ता दावे के साथ बताया। सत्तारूढ़ गठबन्धन के नेतृत्वकारी दल और मोदी भक्तो को आपत्ति है कि राहुल ने यह सब समूचे हिन्दू समाज के खिलाफ कहा है इसलिए वह इस समाज से माफी मांगे। हालांकि इन सब की पीड़ा यह नही हैं कि राहुल ने भरी संसद में हिन्दुओं अपमान कर दिया बल्कि इनकी असल पीड़ा यह है कि जिसे कभी यह लोग ‘पप्पू ‘ साबित कर रहे थे,,उसी राहुल गांधी की स्वीकार्यता देश में अप्रत्याशित रूप में बड़ी है और लोकसभा चुनाव -2024 के जनादेश ने मोदी के उसके खुद के नाम और बल पर किए गए चार सौ पार के दावे को नेस्तनाबूद करके राहुल को एक शक्तिशाली संख्याबल वाले विपक्ष के नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समानान्तर लोकसभा में बिठा दिया है। इसके इतर भक्तो और उनके भगवान की पीड़ा की एक अन्य बड़ी वजह यह भी है कि भारत में महापुरुषों और महादेव के धर्म दर्शन की सही व्याख्या के बल पर वह भारतीय राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण की उस मंडी में प्रतिस्पर्धी के रूप में प्रवेश कर गए है जिसमें भारत के बहुसंख्यक धर्म के अकेले ठेकेदार होने का दम भक्त समुदाय और उनके भगवान भरते आ रहे है।
दरअस्ल दुनिया भर के राजनीतिक परिदृश्य पर धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत अब प्रभावहीन हो चुका है और बहुसंख्यक धर्मों के ध्रवीकरण के बल पर राजनीति करने का नया अध्याय शुरू हो चुका है। भारत में भी पिछले एक दशक के दौरान यह दौर विपक्ष विहीन लोकतन्त्र की स्थापना के सिद्धान्त के सृजनकर्ताओं के नेतृत्व में गतिशील हुआ है। यदि ऐसा न होता तो मोदी अपने दो कार्यकाल के एक दशक में देश के ढांचागत विकास के अपने दावे पर अपना ही विश्वास तोड़कर हिन्दू-मुस्लिम ध्रवीकरण की सियासी तिकडम की और कदापि न मुड़ते। इसी वजह से मोदी बैसाखियों के सहारे ही सही, सत्ता में अपनी वापसी कर पाए है। कई घटक दलों वाले इण्डिया गठबन्धन में राष्ट्रीय अस्तित्व वाली मुख्य भागीदार कांग्रेस इस परिदृश्य को सही से आंक चुकी है और अपनी एक नई पहचान घड़ने के प्रक्रिया में आ चुकी है। वजह यही है कि वैश्विक स्तर पर धर्म निरपेक्षता के फार्मूले को त्याग कर बहुसंख्यक धर्म के ध्रुवीकरण के सिद्धांत की राजनीति में वही टिक पायेगा जो खुद को धर्म के सही सिद्धान्त का वास्तविक अनुयायी साबित कर पायेगा। राहुल गांधी ने सोमवार को यहीं कौशल दिखया और भारतीय महापुरुषों के धर्म दर्शन की परिभाषा बताते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि भाजपा हिन्दुओ की कोई अकेली ठेकेदार नही है और वह हिन्दुत्व के नाम पर जैसी राजनीति करके नफरत और हिंसा का जो बीज बो रही है वह हिन्दू धर्म दर्शन का सिद्धांत ही नही है। चाहें भक्त या अंधभक्त जितने भी तिलमिलाये हो भारतीय राजनीति के इतिहास में दर्ज है कि मोदी के निवर्तमान मन्त्रिमण्डल के एक युवा हिन्दू सदस्य ने राष्ट्रीय राजधानी में सार्वजनिक सभाओ के दौरान देश के एक बड़े धार्मिक समुदाय के प्रति ‘गोली मारो सालों को’जैसे हिंसक और नफरत भरे शब्दों का इस्तेमाल किया था। राहुल के दावे पर तिलमिलाने वालो को इंटरनेट खंगालने पर यह तथ्य मिल जाये गा।