राकेश शान्तिदूत(सम्पादक)
मेट्रो एनकाउंटर (हिंदी दैनिक)
श्री दरबार साहिब अमृतसर के एक प्रवेश द्वार पर एक युवती और दरबार साहिब के एक सेवादार के बीच विवाद की घटना कोई सामान्य घटना न होकर सुनियोजित व लक्षित घटना लगती है। किसान आंदोलन के बाद, पंजाब में घटित कई ऐसी अप्रत्याशित घटनाएं है जो यहाँ की सामाजिक समरसता को भंग करने की कीमत पर शेष भारत में किसी राजसी सियासी लक्ष्य की पूर्ति के लिए ध्रुवीकरण किये जाने की कोशिश होने का संदेह पैदा करती है।
दरबार साहिब परिसर की उपरोक्त घटना की जो वीडियो वायरल हुई है उससे प्राप्त जानकारी के अनुसार एक युवती (जो भाषा-बोली और लहजे से देश के किसी हिंदी प्रदेश की निवासी जान पड़ती है) और दरबार साहिब के एक सेवादार के बीच हुए वाद- विवाद से जुड़ी है। इस युवती के चेहरे पर राष्ट्र ध्वज के तीन रंगों के समान आकृतियां रंग से अंकित है और सेवादार संभवतः इस युवती को दरबार साहिब में प्रवेश के लिए मर्यादा के पालन के लिए आग्रह करता हुआ दिखाई देता है और फिर दोनों में वाद विवाद के दौरान “यह इंडिया में नही है क्या”, ^यह गोल्डन टेम्पल है”, पंजाब और बकवास इत्यादि शब्दों में से सिवाए पंजाब शब्द के अन्य सब शब्द युवती द्वारा तल्खी से प्रयोग किये जाने से बात बढ़ती है। इस स्थिति को प्रथम दृष्टया भले ही युवती की अनभिज्ञता और सेवादार के लिए मर्यादा के नियमों से श्रद्धालुओं को अवगत कराने की कर्तव्य बंदिश मान लिया जाए लेकिन जिस लहजे और प्रकार से युवती ने अपने चेहरे पर पुते तीन रंगों की तुलना राष्ट्रीय ध्वज से करके स्थान की धर्म मर्यादा के अनुपालन करने की अपेक्षा इसे तथाकथित देशभक्ति, देश से जोड़ने और दरबार साहिब को जोर देकर टेम्पल परिभाषित करने की धृष्टता जिस लहजे में की वह किसी विशेष उद्देश्य से तनावपूर्ण माहौल पैदा करने की कोशिश ही कहा जा सकता है। यदि मान भी लिया जाए कि किसी
सेवादार के निजी व्यवहार की वजह या युवती की अबोधता की वजह से यह घटना घटित हो भी गई तो इसे इस कदर मीडिया में तूल देने की क्या अनिवार्यता थी । युवती या उसके परिजन घटना के बाद सबसे पहले अपनी शिकायत लेकर शिरोमणि कमेटी के सम्पर्क कार्यालय में भी जा सकते थे। घटना की वीडियो बना कर इसे अविलम्ब वायरल किया जाना घटना के सुनियोजित होने और इसके पीछे के उद्देश्य के प्रति संदेह को और भी पुख्ता करने वाला है।
श्री दरबार साहिब निसंदेह भारत की पवित्र धरा पर स्थित इसकी सर्वे भवन्तु सुखिनः(सरबत दा भला) और वसुदेव कुटुबकम (एक पिता एकस के हम बारिक) की संस्कृति को परिभाषित करने वाला वह सजीव स्वरूप है जिसे सिक्ख धर्म गुरुओं ने मानव धर्म के रूप पुनर्प्रतिष्ठापित किया है। यह दुनिया का एक मात्र वह धर्म स्थान है जो मानव निर्मित किन्ही देशों के दायरे में न बंध कर सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड के धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। इसके चार द्वार और दरबार साहिब में सुशोभित श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की वाणी इस मानव धर्म को प्रतिबिंबित करते है।
इस महानता के दृष्टिगत इस पवित्र स्थान के दर्शन दीदार के लिए तय मर्यादा का पालन होना ही चाहिये और ऐसा हर अन्य पवित्र स्थान के लिए भी जरूरी है। दक्षिण भारत के हिन्दू मंदिरों और भारत में अलग अलग स्थापित ज्योतिर्लिंगों के पूजन के लिए तो बिना स्नान और तय मर्यादित वस्त्रों को धारण किये प्रवेश की आज्ञा ही नही है। ऐसा शायद अन्य धर्मो के पवित्र स्थानों पर भी दुनिया भर में होगा और वहाँ जाने वाले किसी भी देश धर्म के व्यक्ति को वहां दर्शनों के लिए जाने पर वहां की तय मर्यादा का पालन करना ही पड़ता है। इसी प्रकार श्री दरबार साहिब में आने वाले सभी देशी – विदेशी श्रद्धालुओं और यहाँ तक की हमारे राजसी नेता और अतिथि भी वह चाहे दुनिया के किसी धर्म देश के हो सभी को मर्यादा अनुसार आचार व्यवहार का पालन करते देखा जाता है।
श्री हरिमंदिर साहिब परिक्रमा मैं अकसर सेवादार मर्यादा के पालन के लिए आग्रह करते देखे जा सकते है । कई बार अपने कुछ सेवादार अपने व्यवहारवश तल्खी से भी ऐसा करवाते सामने आए है लेकिन इन्हें समझाते हुए भी प्रबंधक देखे गए है और संबंधित स्त्री पुरुष भी सेवादारों से उलझनें की अपेक्षा उनके व्यवहार पर केन्द्रित न होकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए मर्यादा का पालन करते है। लेकिन ऐसी घटना संभवतः पहली बार हुई है जो किसी विशेष लक्षित उद्देश्य से इसलिए अति प्रेरित दिखती है क्यों कि इस को लेकर मर्यादा के अनुपालन की सलाह युवती को देने की अपेक्षा ट्विटर सहित अन्य सोशल मीडिया पर नकरात्मक ढंग से अविलम्ब एक आक्रमक अभियान छेड़ दिया गया। प्रायोजित और किसी एक विशेष पक्ष को समर्पित होने की छवि में बंधे टी वी चैंनलों पर भी इस घटना को जिस आक्रमक ढंग से प्रसारित किया गया उससे भी कई सवाल खड़े हुए है। क्या यह देश दुनिया से यहां आने वाले श्रद्धालुओं के मन में शंकाएं पैदा करने का कोई प्रयास है या सिक्खों की छवि के प्रति नकारात्मक प्रभाव पैदा करने की कोशिश।
धर्म मर्यादा इस देश की संस्कृति का अहम गहना है। इसलिए इसकी सुरक्षा की ही जानी चाहिए। वैसे भी भारतीय संस्कृति में प्रत्येक व्यक्ति की दिनचर्या में अलग- अलग स्थानों और अवसरों के लिए मर्यादित वेशभूषा पहनने की परम्परा है। उपरोक्त्त घटना में हालांकि श्री दरबार साहिब की प्रबन्धक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के महासचिव ने सेवादार के व्यवहार के लिए खेद व्यक्त किया है जो एक अच्छा कदम है, लेकिन इसके बावजूद सेवादार की कर्तव्यपरायणता पर प्रश्नचिन्ह नही लगाया जा सकता। उपरोक्त घटना की उच्च स्तरीय जांच भी होनी चाहिए ताकि इसकी सत्य वजह सामने आ सके। वैसे शिरोमणि कमेटी को सेवादारों के लिए भी सौम्य व्यवहार की आदत को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण व्यवस्था करनी चाहिये कि वह किसी भी परिस्थिति में संयमित रहें।
इस सबसे इतर ऐसी घटनाओं के पीछे कोशिश करने वालो को यह समझ लेना चाहिये कि पंजाब का धर्म वो धर्म है जो पंजाबियों ने गुरुओं से ग्रहण किया है , इनकी अपनी अपनी पूजा पद्दति कुछ भी हो लेकिन यह अपने गुरुओं के सिक्ख है। तिरंगे पे नाज करने का दिखावा करने वालों को भी यह समझ लेना चाहिये उन सिक्खों को तिरंगे का महत्व न समझाएं जिन्होंने भारत की आजादी के लिए सर्वाधिक बलिदान दिए और आज भी भारत की सुरक्षा के लिए शहीद होने वालों में शुमार जवानों में सर्वाधिक संख्या में तिरंगे मैं लिपट कर आने वाली लाशें सिक्खों की ही होती हैं।