अकालियों से भाजपा के पुनः गठबंधन के षड्यंत्र को किसने तहस नहस किया

                      चंडीगढ़/मेट्रो एनकाउन्टर ब्यूरो

पंजाब में भाजपा की कमान सुनील जाखड़ को देने के तुरंत बाद तेजी से एक संदेश बड़े पैमानें पर प्रसारित हुआ कि भाजपा और अकाली दल में पुनः गठबंधन होना तय हो गया है और 5 जुलाई बुधवार की रात यह घोषणा आधिकारिक तौर पर होने वाली है। इस अनाधिकृत संदेश के आधार पर खबरे भी बन गई कि दोनों दल पंजाब में 6-6 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने पर सहमत हो गए है। एक सीट बसपा के लिए छोड़ी जाएगी चूंकि वह अकाली दल से पहले ही गठबंधन में है और भाजपा को भी इससे फायदा मिलेगा। लेकिन आज 6 जुलाई  वीरवार रात्रि 12 बजे यह समाचार लिखे जाने तक ऐसा कुछ नही हुआ।
पुष्ट खबरे देने वाले खबरचियों ने अकाली दल के कई जिम्मेवार नेताओ से विषय पर पुष्टि चाही लेकिन किसी ने भी पुष्टि नही की अपितु भाजपा के कुछ नेता अनाधिकारित तौर पर गठबंधन की संभावना की बात कहते रहे। अब सवाल यह पैदा हो रहा है कि यह घटनाक्रम कैसे  घड़ा गया और इस सुनियोजित घटनाक्रम की हवा किसने निकाल दी। भाजपा सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार किसान आंदोलन के दौरान अकालियों के भाजपा का साथ छोड़ देने के बाद प्रदेश भाजपा की असली ताकत और लंबे समय से भाजपा पर काबिज और अकालियों के साथ सत्ता सुख भोगते आ रहे नेताओ की क्षमता पूरी तरह केंद्रीय नेतृत्व के सामने नंगी हो गई थी व उनकी संगठन के प्रति अब तक की कारगुजारी पर भी कई सवालिया निशान खड़े हो गए थे।
सूत्र बताते है की पंजाब विधानसभा चुनाव और इसके बाद जालन्धर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव की कमान केंद्रीय प्रभारी और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रूपाणी को सौंपे जाने के बाद केंद्रीय भाजपा नेताओं के चुनावी रण में भारी जमावड़े के बीच हुई पार्टी की बड़ी पराजय से स्थानीय और प्रादेशिक नेतृत्व जिसमें सत्ता सुख भोग चुके भाजपा नेता भी शामिल थे, की पोल रूपाणी और अन्य के सामने खुल गई। केंद्रीय नेता जहाँ इसे प्रादेशिक नेतृत्व की अक्षमता भांप रहे थी वही प्रादेशिक नेता हार का कारण गठबंधन के टूटने को बता कर न केवलं अपनी खाल बचा रहे थे अपितु  पुनः गठबंधन के किये जाने की वकालत भी करने लगे।
केंद्रीय नेताओ का मानना था कि जब बादलों के प्रति भारी अविश्वास की वजह से पंजाब के लोगों खास कर सिक्ख समुदाय ने अकाली दल को ही वोट नही दिए और बसपा से गठबंधन के बावजूद दल की करारी हार हुई तो ऐसे में भाजपा को अकाली दल से गठबंधन का लाभ कैसे मिल सकता है। दूसरी और भारी धन बल मुहैया करवाये जाने के बावजूद भाजपा के पक्ष में कोई बेहतर परिणाम न आने की वजह केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी के जमीनी स्तर पर सांगठनिक तौर पर सिफर होने को माना। ऐसे में प्रादेशिक नेताओं ने  अपनी पारी खत्म होने की आशंका बलवती होती देख 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर देश में बनते नए सियासी परिदृश्य से मोदी  पर बढ़ते दबाव को भांपते हुए खुद के बने रहने के लिए अकाली दल से गठबंधन की वकालत तेज कर दी। इसी बीच 5 जुलाई की सुबह एक संदेश भी बड़े पैमाने पर पत्रकारों को प्रेषित हुआ। अंग्रेजी में बने इस सन्देश का शीर्षक था कि अकाली भाजपा गठबंधन लगभग तय हो गया है और शाम तक इस कि घोषणा भी हो जायेगी। संदर्भित वाक्य यह थे कि “भाजपा अकालियों से गठबंधन के बिना पंजाब में कुछ भी नहीं है, अतः ऐसे में हम ऐसा नही चाहते कि खालिस्तानी विचारधारा के व्यक्ति लोकसभा में निर्वाचित होकर पहुंच जाए इसलिए इस परिस्थिति को पैदा होने से पहले अकाली दल से समझौता कर लेना चाहिए”। इस संदेश का प्रभाव इस ढंग से दिया गया जैसे किसी केंद्रीय एजेंसी ने केंद्रीय भाजपा को भेजा हो।
दरअसल दशकों से पंजाब में हिन्दू सिक्ख तथाकथित एकता के नाम पर अकाली दल से गठबंधन के भरोसे सत्ता सुख भोग रहे प्रादेशिक भाजपा नेतृत्व ने अपने फायदे के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को बादलों के तिलसम से खुद ही कभी मुक्त नही होने दिया और गठबंधन में 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 23 के अंक तक सीमित किये रखा व पार्टी का विस्तार सूबे में जमीनी स्तर तक नहीं होने दिया। इन नेताओं ने निजी राजनीति को बढ़ावा देकर हमेशा झूठे आंकड़े केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाए। यही वजह रही कि देश भर में मोदी के जादू से देश भर में भाजपा की प्रचण्ड विजय के बावजूद पंजाब में मोदी के पैर अभी तक नही लग पाए। किसान आंदोलन में इसी वजह से भाजपा की किरकिरी हुई । सूत्र बताते है कि भाजपा के समूचे प्रादेशिक नेतृत्व से निराश पार्टी संगठन के अत्यंत महत्वपूर्ण नेता ने लोकसभा के जालन्धर उपचुनाव के दौरान
सत्ता सुख भोगी पंजाब के एक वरिष्ठम नेता के बारे में यह विचार व्यक्त कर दिए कि यह यहाँ तक कैसे पहुँच गया इसका कैसा व्यक्तित्व है, बैठक में कुछ बोलता है और बाहर जाकर कुछ और बोलता है।
सूत्रों की माने तो सुनील जाखड़ को प्रधान बनने के बाद इसी नेता ने अपनी जुंडली सहित दिल्ली दरबार मे अकालियों के साथ पुनः गठबंधन की बिसात बिछानी शुरू कर दी और सत्ताकाल के अपने पुराने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उक्त संदेश एजेंसियों के माध्यम से प्रेषित करवाया जिससे गठबंधन होने की खबर तेजी से फैली।
यालेकिन सवाल फिर यह है कि इस षड्यंत्र को विराम किसने लगाया। यहाँ तक कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के चड़ीगढ़ मैं होने को भी गठबंधन होने की प्रक्रिया से जोड़ कर प्रचारित किया गया।
सूत्र बताते है के केंद्रीय प्रभारी श्री रूपाणी ने चुनावो के दौरान इन नेताओं की कार्यप्रणाली ,कारगुजारी देख ली थी और चुनाव बाद हुई अमित शाह सहित अन्य केंद्रीय नेताओ की पंजाब में हुई रैलियों की विफलता से वह खिन्न थे। लिहाजा सुनील जाखड़ पर निर्णय करवाने से पहले ही वह सजग हो गए थे।  ऐसे में गठबंधन की इस साजिश के आकार लेने से पहले ही उन्होंने ने यह कह कर इस तथाकथित गठबंधन पर पानी फेर दिया कि भाजपा पंजाव की 13 की 13 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी।
सूत्र बताते है कि  सत्ता सुख भोगी प्रदेश भाजपा की जुंडली का इस गठबंधन के लिए रचे षड्यंत्र का उद्देश्य अपने अस्तित्व को बचाने के अलावा नए प्रधान सुनील जाखड़ के स्वतंत्रता से काम करने के मार्ग में बाधा खड़ी करना भी था। सूत्र बताते है कि भले ही अकाली नेता गठबंधन के विषय पर पत्रकारों द्वारा जानकारी मांगे जाने पर नकारते रहे लेकिन वास्तव में वह भाजपा नेताओं की इस योजना में शामिल थे। हालांकि रूपाणी के बाद सुखबीर ने भी बयान दिया कि गठबंधन नही होगा।

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