बरजिंदर सिंह हमदर्द को 17 प्रश्नों के जवाब लेकर हाजिर होने के लिए विजिलेंस का नोटिस,सूबा सरकार और वरिष्ठ पत्रकार में लड़ाई अगले पड़ाव पर

* मामला जंग -ए हमदर्द के जंग के आजादी स्मारक के चेयरमैन होने से जुड़ा लेकिन विजिलेंस ने सम्मन में अजीत समूह के संपादक के रूप में संबोधित किया।

* प्रसंग ने कई ज्वलन्त सवालो की ओर ध्यानाकर्षण किया

                 जालन्धर/मेट्रो एनकाउन्टर ब्यूरो

यहाँ के अजीत मीडिया ज़मूह के पंजाब सरकार द्वारा विज्ञापन बंद किये जाने को मीडिया का गला दबाना कहे जाने के बाद अजीत समूह के पक्ष में अजीत भवन के सभागार में सभी विपक्षी पार्टियो की सामूहिक बैठक में सभी नेताओं के पंजाब की आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान पर हमलावर रुख अपनाए जाने के बाद सरकार भी आर पार की लड़ाई पर उतर आई है जिसके संकेत उक्त बैठक की ब्यानबाजी मीडिया में प्रसारित होने के बाद  खुद मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आक्रमक जवाबी  ब्यानबाजी करके पहले ही दे दिए थे।

29 मई 2023 को पहली दफा हमदर्द को विजिलेंस द्वारा तलब किये जाने के बाद हमदर्द के अदालत की शरण जाकर कुछ राहत प्राप्त करने तक विजिलेंस ओर हमदर्दों जारी आँख मिचौली के बीच अब विजिलेंस ने बरजिंदर सिंह को 16 जून 2023 को सुबह 10 बजे विजिलेंस दफ्तर में व्यक्तिगत रूप में तलब किया है। विजिलेंस ने सम्मन में  पहले सम्मन से लेकर अदालत की शरण और अदालत के आदेशानुसार भेजे गए सवालों के जवाब 10 दिन के भीतर अब तक किसी भी रूप में न दिए जाने तक के प्रसंग से हमदर्द को अवगत कराते हुए भेजे गए 17 सवालों के जवाब लिखित में साथ लेकर 16 जून को विजिलेंस दफ्तर में पेश होने के लिए कहा है।

कुछ बड़े सवाल खड़े हो रहे है।

* हालांकि भ्रष्टाचार  हुए होने की आशंका से जुड़ा यह मामला जंग के आज़ादी स्मारक जिसके बरजिंदर हमदर्द अध्यक्ष है, के निर्माण और प्रबंध से सम्बंधित है लेकिन 16 जून के लिए भेजे गए समन्न मैं उन्हें  अध्यक्ष की अपेक्षा अजीत अखबार का संपादक कह कर सम्बोधित किया गया है। ऐसा क्यों, क्या भगवंत मान बरजिंदर सिंह द्वारा अजीत समूह की सरकार से विज्ञापन की लड़ाई को अजीत भवन में सरकार के खिलाफ विपक्ष  को एकत्रित करके सियासी लड़ाई बनाने से खफा है ? और वह बरजिंदर सिंह को मामले में भेजे गए सम्मन में  स्मारक का अध्यक्ष सम्बोधित करने की बजाय उन्हें अजीत अखबार का सम्पादक लिखवा कर उनकी साफ सुथरे पत्रकार होने की छवि को दागदार करने पर उतारु हो गए है। गौर हो कि स बरजिंदर सिंह ने पूर्व काल में सिद्धान्तों पर अडिग रह कर पद्मश्री और राज्यसभा की सदस्यता जैसे प्रतिष्ठित अलंकार और पद त्यागे है।

* पंजाब में विपक्षी दलों के नेताओ में परस्पर  जितनी कड़वाहट है ,छींटाकशी होती आईं है वह किस एक पार्टी या नेता के कहने पर बरजिंदर सिंह या अजीत समूह के पक्ष में ऑल पार्टी मीटिंग के लिए राजी हो गए जबकि पंजाब के लिए अति महत्वपूर्ण और ज्वलन्त मुद्दों पर वह कभी एकजुट नहीं हुए। क्या यह बैठक खुद बरजिंदर सिंह ने बुलाई यदि नही तो बैठक के लिए अजीत भवन की अपेक्षा कोई सार्वजनिक स्थान क्यों नही चुनां गया।

* जिस विषय को पंजाब सरकार द्वारा मीडिया का गला दबाना बताया गया था उसके विरुद्ध अभी तक पंजाब प्रेस क्लब, चंडीगढ़ प्रेस क्लब या  पत्रकारों की किसी अन्य संस्था ने आवाज बुलंद क्यूं नही की? जबकि दिल्ली में संसद की कार्रवाई के की कारवाई की मीडिया कवरेज के अधिकारी की लड़ाई केंद्र सरकार से प्रेस क्लब ऑफ इंडिया लड़ रहा है।

* आम तौर पर अखबारों और अन्य मीडिया साधनों को विज्ञापन के लिये केंद्र सरकार के डी ए वी पी  विभाग की विज्ञापन नीति के अनुसार उससे मान्यता प्राप्त  मीडिया को इसी आधार पर राज्य सरकारें अपने यहाँ  मान्यता देकर विज्ञापन के लिए मान्यता दे देती है।वैसे davp की विज्ञापन नीति में यह स्पष्ट लिखा है की मान्यता का मतलब यह कदापि नहीं है कि अखबारों या अन्य मीडिया साधनों को विज्ञापन के रूप में आर्थिक सहायता मुहैया करवाई जानी है। विज्ञापन नीति बेशक में मान्यता और रेट अप्रूवल प्रसार संख्या के आधार पर मिलती है लेकिन मात्र दस्तावेजी खानापूर्ति करके आंशिक से भी कम गिनती में छपने और प्रसारित होने वाले कई अखबार करोडो रुपये के सालाना विज्ञापन प्राप्त कर जनधन को विभागीय मिली भगत से चूना लगा रहे है। भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूद करने के दावे करने वाली।केंद्र और राज्य सरकारों की नाक के नीचे दशकों से जारी यह रीति नीति सरकार द्वारा अपने हित साधक अखबारों को धनापूर्ती करने या अपने पक्ष में लिखवाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की शंका खड़ी करती है। जबकि लोकतंत्र के वास्तविक रखवाले छोटे अखबार कमर्शियल मीडिया जमाने में साधनों के अभाव में बंद हो जाते है।

*क्या आम आदमी पार्टी इस प्रसंग के दौरान बरजिंदर सिंह की प्रधानमंत्री से हुई व्यक्तिगत बैठक को लेकर चिढ़ गई है और अजीत समूह की सूबा सरकार से लड़ाई  अब सियासी लड़ाई बन रही है।

* क्या सरकारी धन से जुड़े किसी भी प्रोजेक्ट में भ्र्ष्टाचार की आशंका पर सरकार के जांच करने के माप दंड अलग अलग हो सकते है?

 

 

 

 

 

 

 

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