मोदी सरकार,भारत दुनियां की भावी तीसरी इकोनॉमी, 80 करोड़ गरीब भारतीयों को मुफ्त राशन और दीन दयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन या अन्तोदय सिद्धान्त

आलेख/राकेश शान्तिदूत(सम्पादक मेट्रो एनकाउंटर)

विश्वगुरु भारत’ के मुखिया’ नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि भारत को दुनिया की अर्थव्यस्थाओं में तीसरे नम्बर पर लाने की जिम्मवारी भी उन्ही के कंधो पर होगी। यानी वह इस विश्वास से लबालब हैं कि देश उन्हें ही निरन्तर तीसरी बार प्रधानमंत्री बनायेगा और उनकी पार्टी में भी उनके कद का कोई दूसरा नही है जो इस पदभार के काबिल हो या इस संकल्प के साथ दायित्व निर्वाह की क्षमता वाला हो। हालांकि उनका यह आत्मविश्वास चार राज्यो तेलंगाना, राजस्थान, मध्यप्रदेश और मिजोरम के विधानसभा चुनाव की जारी प्रक्रिया में कुछ हिला हुआ दिखता है, शायद इसीलिए उन्हें अबतक खुद के किये काम से अधिक अन्य पार्टियों की तरह मुफ्त की संस्कृति को बढ़ावा देने के चुनावी हथियारों को थामना पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश में एक जनसभा के दौरान घोषणा की है कि देश में 80 करोड़ गरीबो को उनकी सरकार अगले 5 वर्ष तक मुफ्त राशन देना जारी रखे गी। इस घोषणा के पीचे के मकसद को सहज ही समझा जा सकता है। यह वैसे ही है जैसे मोदीं पगड़ी बांध कर पंजाब में सिखों और अन्य राज्यो मैं वहां की वेशभूषा पहन कर लोगो को उनसे उनके रिश्ते का आभास कराना चाहते है। इसकी वजह जाहिर है कि लगभग 10 साल के उनके कार्यकाल में देश को विकास के मार्ग पर लेजाने के जो उन्होबे दावे किए है वह देश के आम नागरिक को उनके निकट लेजाने के लिए काफी नही है या फिर आम नागरिको को इस विकास का आभास ही नही हुआ और या फिर उन्हें मोदी के दावों पर विश्वास नही है। तभी तो उन्हें हर सूबे को अपने प्रति आकर्षित करने के लिए फैंसी ड्रेस का सहारा लेना पड़ रहा है।

भारत को दुनिया की पांचवी इकोनामी बना देने के दावे।के बाद अब तीसरी इकोनॉमी बनाने और 80 करोड़ गरीबो को मुफ्त राशन देने की घोषणा मोदी के दावों पर स्वयमेव ही प्रश्नचिन्ह लगाए हुए है। इसका सीधा अर्थ यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने का लाभ गरीब को सिर्फ इतना ही है कि उसे दो वक्त की रोटी को राशन मुफ्त मिल जाये। यह स्थिति क्या दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन सिद्धान्त या अंत्योदय सिद्धान्त के अनुसरण को वास्तव में चरितार्थ करने के लिए काफी है? वो भी तब जब देश की तीव्रता से बढ़ती अर्थव्यस्था पर देश के चंद परिवारों का एकाधिकार हो। यह तो देश के सभी स्त्रोत लूट कर लोकतांत्रिक व्यवस्था के किंग यानी आम नागरिक को मुफ्त राशन देकर भिखारी बनाये रखकर सत्ता पर स्थाई कब्जा करने की साजिश के समान है।

सीएमआईई की ताजा रिपोर्ट में बेरोजगारी की ताजा दर विगत अक्टूबर में (10.05%) पिछले 29 माह में सबसे ज्यादा रही बताई गई है। यह स्थिति भयावह है और इससे यह साफ है कि अर्थव्यवस्था के बढ़ने का लाभ देश के अंतिम व्यक्ति तक नही जा रहा और इसका फायदा सिर्फ चंद औधोगिक घरानों को या सत्तारूढ़ दल को सत्ता में वापिसी के लिए लोकप्रिय सरकार होने का भरम पैदा करने हेतु मुफ्त का राशन और घरेलू कुकिंग गैस पर सब्सिडी देकर खुद सक्ष्म बनने में हो रहा है। दूसरे शब्दों में लोकतांत्रिक सत्ता में यह देश के संसाधनों को लूटने का अचूक फार्मूला है जो नागरिको को निठल्ले व अमूढ़ बना कर राष्ट्रं को कमजोर भी कर रहा है।

इस तथ्य को इस बात से भली भांति परखा जा सकता है कि
प्रधानमंत्री ने कुछ राज्यों में जारी विधानसभा चुनाव के दौरान आगामी पांच वर्ष के लिए 80 करोड़ गरीबों को फ्री राशन जारी रखने का वादा किया, लेकिन कुछ हफ्ते पहले आई सरकारी एनएसओ की पीएलएफएस रिपोर्ट देश में बेरोजगारी की दर मात्र 3.8 प्रतिशत बता रही है। यह विरोधाभाष इसलिए है चूंकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मानदंडों के उलट एनएसओ ने अनपेड वर्कर (जिन्हें निश्चित मेहनताना नहीं मिलता) को ‘स्व-नियोजित’ वर्ग में जोड़ लिया था। जब कि वास्तविकता यह पता चल रही है कि अनपेड वर्करों की संख्या पिछले पांच वर्षों में चार करोड़ से बढ़कर 9.50 करोड़ हो गई है। ग्रामीण भारत में माल मांग की कमी के कारण दुकानदार और अन्य असंगठित कारोबारी अपने यहाँ से ऐसे कामगारों को हटा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी ने चुनावी वादा किया है कि वह किसी भी गरीब के घर चूल्हा जलना बंद नहीं होने देंगे। सवाल यह है कि क्यों देश में आज भी 80 करोड़ जरूरतमंदों के पास इतना भी पैसा नहीं है कि पेट की भूख शांत कर सकें? और फिर अगर देश जीडीपी में नौ वर्षों में दसवें से पांचवें पर पहुंच गया है तो 80 करोड़ लोग आश्रित क्यों हैं? आधुनिक दौर में कल्याणकारी राज्य का काम अपरिहार्य रूप से ऐसी नीतियां बनाना है, जो केवल रोजगार ही नहीं उपलब्ध कराए बल्कि लोगों के जीवन की गुणवत्ता बेहतर करे । विश्व हमें ‘गुरु’ तब मानेगा जब भीख के राशन से पेट पालने की जगह हर नागरिक शान से अपनी कमाई से जीवन-यापन करेगा और अपने परिवार को शिक्षा और स्वास्थ्य देगा। हो सकता है कि देश, मोदी को एक बार फिर से जिम्मेदारी सौंप दे लेकिंन क्या मोदी भारत को दुनिया की तीसरी इकॉनमी बना कर देश के नागरिकों को इस काबिल बनाने की जिम्मवारी निभाये गे कि अर्थव्यवस्था में उन्हें इस कदर हिस्सा मिले कि वे मुफ्त के राशन को लेकर भिखारी बनने की अपेक्षा विवेक के साथ सत्ताधीशों से सवाल करने की जुर्रत अपनें भीतर पैदा कर सकें। अन्यथा जैसे अंग्रेजों से भारतीयों को सिर्फ सत्ता ही हस्तांतरित हुई स्वराज्य नही मिला था, वह प्रभाव कांग्रेस से मौजूदा सरकार को सिर्फ सत्ता हस्तांतरित होने के रूप में बना रहेगा। एक सवाल यह भी है कि जब ग्लोबल हंगर इंडेक्स (भूखे देशों की वैश्विक सूची) में भारत की स्थिति में बढोतरी दिखाया गई थी तो भारत सरकार ने आंकड़ो पर आपत्ति व्यक्त करते हुए इसे गलत बताया था लेकिन एकाएक 80 करोड़ लोगों के भूखे होने को स्वीकार करते हुए अगले पांच वर्ष के लिए उन्हें मुफ्त राशन देने की घोषणा कर दी गई।

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