सुशिक्षित वही जो दयालु, मिलनसार और निस्वार्थ भाव से परिपूर्ण हो

क्या बच्चों के बड़े होने के बाद भी उनकी सरलता और भोलापन बनाए रखने का कोई तरीका है? यदि हम ऐसा कर सकें, तो हमने वास्तव में कुछ अद्भुत प्राप्त कर लिया होगा, क्योंकि भोलापन सुंदर है।

हम अपनी शिक्षा प्रणाली में करुणा, देखभाल और बांटने के मानवीय मूल्यों को कैसे बनाए रख सकते हैं? हम यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि शिक्षा बच्चे के अंतर्निहित गुणों का पोषण करे और प्रत्येक बच्चा प्रतिस्पर्धी वातावरण में भी मित्रतापूर्ण रहे और साझा करना सीखे? क्या शिक्षा केवल अच्छे अंक प्राप्त करना है ताकि बाद में अच्छी नौकरी पाई जा सके? या फिर यह समग्र रूप से समाज की दीर्घकालिक समृद्धि की नींव रखने के विषय में है?

“देने” की बुनियादी मानवीय प्रवृत्ति उस शिक्षा की खोज में कहीं खो गई है जिसका दृष्टिकोण संकीर्ण है और स्वार्थ और लालच को बढ़ावा देता है। शिक्षण के पुराने और अप्रचलित तरीकों में सुधार की आवश्यकता है। शिक्षा को न केवल छात्रों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा करनी चाहिए बल्कि आज के विविध सांस्कृतिक प्रभावों को भी प्रतिबिंबित करना चाहिए। शिक्षा की एक अच्छी प्रणाली से बच्चों में आत्म-सम्मान और रचनात्मकता पैदा होनी चाहिए। इसे एक स्वतंत्र, जुनून-मुक्त, क्रोध-मुक्त और शांत दिमाग का पोषण करने में सहायता करनी चाहिए। ऐसी सर्वांगीण शिक्षा प्रणाली, युवा मन में कट्टरता की भावना को भी नियंत्रित कर सकती है। शिक्षा के हितधारकों को एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर विचार करना चाहिए जो मानवीय मूल्यों को बनाए रखे और जीवन के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करे। शिक्षक एक बच्चे की शिक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण संसाधन हैं। शिक्षकों और स्थानीय अधिकारियों को एक कक्षा कक्ष प्रणाली बनाने के लिए हाथ मिलाना चाहिए जिसमें एक बच्चा न केवल जानकारी को आत्मसात करे बल्कि सजगता को भी बढ़ावा दे।

*सजगता बढ़ाना सीखता है*

शिक्षा सुधार में नवीन रणनीतियाँ शामिल होनी चाहिए जो शिक्षकों को छात्रों के परिणामों में सुधार करने और उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए सशक्त बनायें। आज, मीडिया, इंटरनेट, फिल्में और वीडियो गेम बच्चों पर सूचनाओं की बौछार कर रहे हैं। सूचनाओं का भार, मस्तिष्क की जानकारी को पचाने और विश्लेषण करने की क्षमता को प्रभावित करता है और प्रायः इसके परिणामस्वरूप ध्यान की कमी जैसे विकार पैदा हो जाते हैं। शिक्षण के रचनात्मक तरीके इन मुद्दों से निपटने में सहायता कर सकते हैं और बच्चों को एक स्वस्थ व्यक्तित्व प्रदान करने में सहायता कर सकते हैं।

बच्चों को बौद्धिक रूप से तीक्ष्ण करने के अलावा, शिक्षा प्रणालियों में बच्चों की सीखने की प्रक्रिया के अंश के रूप में खेल जैसी शारीरिक गतिविधियों के साथ-साथ ध्यान, योग और प्राणायाम जैसी प्राचीन तकनीकें भी शामिल होनी चाहिए जो उन्हें अपनी भावनाओं को प्रबंधित करना सिखाएंगी। सच्ची शिक्षा का अर्थ अध्ययन के एक निश्चित पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाने से कहीं अधिक है।

जब एक बच्चा सबके प्रति अपनेपन की भावना के साथ बड़ा होता है, तो वह समुदायों के साथ सार्थक तरीके से जुड़ने के लिए तैयार होता है। और जब तक युवा स्नातक के बाद कॉलेज से बाहर निकलते हैं, तब तक वे अच्छी तरह सीख जाते हैं कि उन्हें स्वयं के, देश और दुनिया के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करना है।

अब समय आ गया है कि हम ऐतिहासिक रूप से शिक्षा के सम्मान और प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के तरीकों और साधनों की पहचान करने के लिए एक साथ आएं। आज एक व्यापक विचारधारा वाली शिक्षा के साथ-साथ गर्मजोशीपूर्ण और देखभाल करने वाले हृदय की भी आवश्यकता है। शिक्षा का कार्य व्यक्ति को आलोचनात्मक ढंग से सोचना सिखाना है जहाँ बुद्धिमत्ता चरित्र के साथ आती है। इसलिए यदि कोई अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है और फिर दूसरों को नीची दृष्टि से देखना शुरू कर देता है या सिर्फ अपने लिए धन बनाने में लग जाता है, तो ऐसी शिक्षा का कोई लाभ नहीं है।

एक सुशिक्षित व्यक्ति वह है जो मिलनसार और दयालु है, और निस्वार्थ कार्य करने में सक्षम है। संपूर्ण शिक्षा वह है जो व्यक्ति को पूरी दुनिया को सुरक्षित तथा खुशहाल स्थान बनाने में एक वैश्विक नागरिक की भूमिका निभाने के लिए सशक्त बनाती है।

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