राकेश शान्तिदूत का आलेख/यू पी में योगी की जीत से अधिक पंजाब में आप की जीत को ऐतिहासिक साबित करने की कवायद क्यों?

             

                 राजनीतिक विश्लेषण/राकेश शान्तिदूत

पंजाब में आम आदमीपार्टी (आप)की प्रचंड जीत सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उन चैनलों पर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित की जा रही है जिनकी भाषा उत्तर भारत के प्रदेश शायद नहीं समझते। हालांकि यह जीत अदभुत अवश्य है लेकिन ऐतिहासिक या असाधारण नही है, क्यों अकाली दल + ने भी 1997 में 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा की 92 +सीटों पर कब्जा जमाया था और सीधे मुकाबलों में कांग्रेस 14 पर सिमट गई थी। आप ने तिकोने या बहुकोणीय मुकाबलों में 92 सीटे जीती है।

उधर यू पी में भाजपा ने लगातार दूसरी बार गत विधानसभा चुनावों में हासिल सीटों के मुकाबले 54 सीटें गंवाई ही हो लेकिन यह ऐतिहासिक जीत है। इसके
ऐतिहासिक होने की वजह यह है कि इस बार यह चुनाव योगी पुनः मुख्यमंत्री बनाने के प्रचार से लड़ा गया। 1985 में इन्दिरा गांधी के समय कांग्रेस की निरन्तर दूसरी बार सरकार बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी अन्य पार्टी के पक्ष में सूबे ने जनादेश दिया हो और योगी पहले ऐसे नेता है जो निरन्तर दूसरी बार मुख्यमंत्री बन रहे है कांग्रेस के निरन्तरता से यह पहलू नही जुड़ा था।

लोकतान्त्रिक चुनावी गणित का एक प्रामाणिक फार्मूला है कि जहाँ सत्ताधारी दल या दलों के प्रति गुस्सा होता है वहाँ जनता सौ प्रतिशत बदलाव करती है। 1977 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध देश की जनता ने ऐसा ही गुस्सा व्यक्त किया था। पंजाब की जनता ने भी गत 7 दशकों से बारी बारी सूबे को लूटते चले आ रहे दलों के विरुद्ध के विकल्प मिलते ही अपना गुस्सा प्रचंडता के साथ व्यक्त किया है। इस दृष्टि से ही आप की जीत ऐतिहासिक कही जा सकती है। आप का नेतृत्व बेशक इस जीत का आधार अपने दिल्ली मॉडल को प्रचारित करे लेकिन यह जमीनी सच नही है और न ही उसकी यह जीत उसके जनता के विश्वास का प्रकटीकरण है। वस्तुतः यह जीत उसे पंजाब का विश्वास जीतने की परीक्षा के लिए दिया गया महज मौका है। स्वयं आप ने अपने प्रचार को जनता के प्रति आग्रहकुन्न तरीके से “इक्क मौका केजरीवाल नूँ” के नारे पर केंद्रित किया था। अब जब यह प्रचारित किया जा रहा है कि आप का राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर चमकने का रास्ता खुला है, तो इसे भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि राष्ट्रीय सत्ता के आधार प्रदेश में उसे बहुत कम मत प्राप्त हुए हैं व वह एक भी सीट जीत नही पाई।

इसके विपरीत यू पी भाजपा की जीत अधिक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक है क्यों कि यह मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी नीत उसकी सरकार की कारगुजारी के बल पर हासिल हुई है। भले ही समाजवादी पार्टी को यहाँ पहले से अधिक सीटें हासिल हुई है लेकिन यहां योगी के विरुद्ध लोगो में गुस्सा या नाराज़गी नहीँ थी। यदि नाराजगी होती तो भाजपा के विरुद्ध भी पंजाब की तरह ही यू भी गुस्सा प्रकट करती।
सरकार के प्रति जनता में गुस्सा न हो तो विपक्षी सपा की भांति सीटें बढ़ाई तो जा सकती है सत्ता परिवर्तन नही किया जा सकता। यू पी लखीमपुर खीरी जैसी घटना, किसान आंदोलन और रेप केस इत्यादि जैसी घटनाओं के बावजूद सूबे में भाजपा की सत्ता में वापिसी बताती है कि योगी के प्रति जनता में नाराजगी या गुस्सा नही था। इन घटनाओं को लेकर जो गुस्सा था वह केंद्र के खिलाफ था। किसानों और मुसलमानों में जो नाराजगी थी वह मोदी नीत केंद्र की भाजपा नीत सरकार के विरुद्ध थी। संभवतः यही वजह ही मुस्लिम बहुल और किसान प्रभावित क्षेत्रों से सपा लाभ हुआ।

यू पी देश का सब से बड़ा सूबा है और इसका देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव है जो केंद्रीय सत्ता सौंपने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पंजाब में आप की जीत इसके समानांतर नहीं रखी जा सकती। फिर राष्ट्रीय मीडिया परिदृश्य पर आप के विरोध की डफली बजाते आये गोदी मीडिया पर अब पंजाब में आप की जीत ऐतिहासिक क्यूँ प्रचारित की जा रही है। क्यूँ योगी की जीत को ऐतिहासिक या उनकी उपलब्धि के रूप में दर्ज नही किया जा रहा । इसे मोदी की जीत तो कहा नही जा सकता क्योंकि चुनाव प्रचार पहले की भांति मोदी या शाह चुनाव प्रचार की प्रचंडता के दौर में सक्रिय नही हुए। इसके विपरीत राजनाथ सिंह की उपस्थिति महसूस की गई। नरेंद्र मोदी के अपने संसदीय निर्वाचन केंद्र में भाजपा ने बेशक सभी आठ सीटें जीत ली हों लेकिन वाराणसी में भाजपा का मत प्रतिशत पूर्व से कम हुआ है।

केंद्रीय सत्ता की रीढ़ की हड्डी यू पी में योगी की जीत के मुकाबले केजरीवाल की जीत को अधिक महत्वपूर्ण प्रचारित करने का गोदी मीडिया का प्रचार अचंबित करने वाला भले ही हो लेकिन इसे समझना उतना कठिन नहीं है जितना लाखों करोड़ के कर्ज तले दबे पंजाब में आप के लिए हजारों करोड़ रुपये मुफ्त सुविधायें देने हेतु पैदा करना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यू पी की जीत को 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफइनल की जीत करार दे रहे हैं लेकिन सेमीफइनल में योगी के नेतृत्व में भाजपा की ऐतिहासिक यू पी फतेह क्या भाजपा की केंद्रीय राजनीति में कोई नए समीकरण पैदा करने की शक्ति प्राप्त कर चुकी है या मात्र इस जीत में भाजपा का दूसरी पंक्ति का नेतृत्व शक्तिशाली सिद्ध हुआ है।

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