JALANDHAR/केजरीवाल स्पष्ट करें, पंजाबी हिन्दुओं को किससे क्यूँ और कैसा डर

                             संपादकीय लेख
               राकेश शान्तिदूत,संपादक, मेट्रो एनकाउंटर
पंजाबी हिंदुओं को डराने का अब तक जो काम जमना पार के दल करते आये है , इस बार वह पंजाब विधानसभा सभा चुनाव के चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी (आप)के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल करने का प्रयास कर रहे हैं।
दैनिक भास्कर अखबार ने ट्वीट किया है कि लुधियाना में केजरीवाल ने कहा है कि पंजाब के हिन्दू, प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी की सुरक्षा में सेंध की घटना के बाद से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यह ट्वीट सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल किया गया है।
भाषाई आंदोलन के समय पंजाब के बंटवारे से लेकर धर्म के नाम पर पंजाबियों को बांटने के सियासी खेल में अब तक हमेशा हिन्दुओ को डरा कर, कभी आतंकवाद और कभी हिन्दू – सिख एकता के नाम पर सियासी दलों ने अपनी रोटियां सेंकी है लेकिन रोटी- बेटी के रिश्ते और गुरु नानक के सांझीवालता के सिद्धांत के बल के आगे पंजाबियत सामाजिक परिपेक्ष्य में कभी इनसे बांटी नही जा सकी। लेकिन इसका प्रभाव यह जरूर रहा है कि सियासी रूप से पंजाबी हिन्दू न तो अपना खुद का नरेटिव कभी तय नही कर पाया और न ही अपनी क्षेत्रीय पहचान को संभाल सका है। राष्ट्रीय पार्टियों के स्थानीय नेतृत्व कभी इस पहचान से पंजाब के सांझे मुद्दों पर भी सूबे का पक्ष रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और हमेशा जमना पार के नरेटिव से हाँके जाते रहे हैं।
एक अपवाद किसान आंदोलन अवश्य कहा जा सकता है जिसमें पंजाब के गैर सियासी हिन्दू ने सूबे के  सांझे हितों ,दरियाओं के पानी के बंटवारे, पंजाबी भाषा इत्यादि में निभाई अपनी पूर्व भूमिका के विपरीत किसानी के सांझे हित में अपनी पंजाबी पहचान का प्रतिनिधित्व किया। शायद यही वजह है कि अब कुछ दलों  की सियासी जरूरत हिन्दू- सिक्ख एकता की अपेक्षा दलित जट्ट की या भम्बल भूसे में दलित बनाम अन्य से अन्य बनाम दलित ध्रुविकर्णो में बदल चुकी है।
हिन्दू – सिक्ख एकता के अटूट सियासी दावों वाले अकाली भाजपा – गठबंधन के,  कृषि कानूनों के विरोध से उपजे आंदोलन की वजह से टूटने के बाद इस बार विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब का सियासी मंच, सत्ता कब्जाने की ललक से जाति आधारित बंटवारे के फार्मूले से सजाया गया दिख रहा हैं। इसकी शुरुआत अकाली दल से तलाक़शुदा भाजपा ने सूबे का मुख्यमंत्री आरक्षित(दलित)समाज से बंनाने की घोषणा कर के जट्ट बनाम अन्य का ध्रुवीकरण रचने की कोशिश करके की थी। लेकिन अकाली दल द्वारा दलित बहुल बसपा से गठबंधन और कांग्रेस द्वारा आरक्षित समाज के चरणजीत चंन्नी को अमरिंदर सिंह के बदल के रूप में मुख्यमंत्री बना देने से उसकी यह योजना धराशायी हो गई।
जो भाजपा अकाली दल से अलग होने पर छाती ठोंक कर अकेले दम पर पंजाब विधानसभा की सभी 117 सीटों पर बैठने का दम भर रही थी चुनाव पूर्व ही उसका दम फूल गया और उसे अपने नाम को सार्थक करने या अपने शरीर के अंगों को पूरा करने के लिए बूढे घोड़ो कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींडसा पर दांव लगाना पड़ गया।
इस परिदृश्य में संभवतःकेजरीवाल को दिख रहा है कि पंजाब का हिन्दू जो बड़ी तादाद में कांग्रेस खेमे या हिन्दू पार्टी की छवि की वजह से आंशिक रूप से भाजपा के साथ था पुनर्विचार की स्थिति में है लेकिन इस बड़े वोट बैंक को साथ लेने के लिए उनका तरीका अन्य दलों के पुराने तरीक़े से भिन्न नही है। पंजाबी हिन्दूओं को उनके अपने नरेटिव से सोचने का आह्वान करने की अपेक्षा केजरीवाल ने पंजाब के हिन्दुओं के असुरक्षित होने की जो वजह बताई है, वह उनमें भय व्याप्त करने में सक्षम है।
सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान उनके काफिले के रुकने को भाजपा ने सुरक्षा चूक से अधिक साजिश बताया था और इसके लिए सीधे सीधे मुख्यमंत्री चंन्नी को कटघरे में खड़ा किया था। ऐसे में केजरीवाल के वक्तव्य का मतलब समझा जा सकता है कि केजरीवाल क्या कहना चाहते है। यदि मोदी वाली घटना से उपजा यह खतरा पाकिस्तान से है तो फिर यह सिर्फ हिन्दुओं तक ही कैसे सीमित है, अन्य पंजाबियों के लिए यह क्यूँ नहीं है, यह झाड़ू मुख्यमंत्री को समझाना चाहिए और यदि हिन्दुओं को यह खतरा चन्नी से है तो केजरीवाल पंजाब को किस ओर ले जाना चाहते है, पंजाबियों को समझ जाना चाहिए। बेअदबी की घटनाओं की जांच की माँग के दौर में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी कहा था कि इस वजह से हिन्दू सिक्ख एकता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। पंजाबी हिन्दू तब भी और अब भी यही चाहता है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और दोषियों को सख्त सजा मिले। केजरीवाल को भी अपने कथन के संदर्भ में यह बात समझ लेनी चाहिए। गत विधानसभा चुनाव में जब आप का पंजाब की सत्ता पर काबिज़ होना तय माना जा रहा था, तब किसी व्यक्ति विशेष के घर केजरीवाल के रूकने की खबर से हिन्दुओं को डरा कर  पासा पलट गया था। क्या इसी लिए अब वह खुद हिन्दुओं को डरा कर सत्ता पाना चाहते हैं। ऐसा करके वह पंजाब का भला नहीं कर रहे अपितु वह पंजाब के एक बड़े वर्ग के प्रति भ्रम पैदा करके उन्हें अन्य राज्यों में असुरक्षित करने का प्रयास जाने अंजाने कर रहे हैं।
विधानसभा चुनाव को लेकर इस बार जो बिसात सियासी दलों ने बिछाई है वह पंजाबियों के लिए कड़ी परीक्षा लिए खड़ी है। इसलिए उन्हें न केवल इस बिसात को पलटना है अपितु अपने सामाजिक सौहार्द और एकता को एक बार फिर साबित करना है ताकि अब हर बार पंजाब अपना सियासी नरेटिव पंजाब की ज़रूरतों के अनुरूप करे ना कि यमुना पार से आये नरेटिव का अनुसरण करता रहे।

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