महाराजा अग्रसेन जयंती पर एडवोकेट नवीन सिंगला का विशेष लेख विशेष लेख

महाराजा अग्रसेन – ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ सिद्धान्त की मूर्ति
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                     लेखक/एडवोकेट नवीन सिंगला
अपना-अपना शब्द ज्ञान है, रामराज्य कह लें, परम्वैभव बोलें या आधुनिक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था अर्थ एक ही है कि वह प्रणाली जहां सभी का हित और सभी के सुख का चिन्ता की जाती है उसी को जीवन में ढाला महाराजा अग्रसेन जी ने। ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय’ उनकी शासन प्रणाली के साथ-साथ जीवन जीने का भी सिद्धान्त था। उन्होंने दुनिया में समाजवाद की नींव रख न केवल सम्पन्नता के द्वार खोले और जनसाधारण के जीवन में सुख का सञ्चार किया बल्कि पशु हत्या पर रोक लगा कर मानव के साथ-साथ जीव जगत के भी जीने के अधिकार का सम्मान किया। महाराज अग्रसेन ने समाजवादी शासन व्यवस्था की स्थापना की जिसमें किसी भी व्यक्ति की कोई आर्थिक हानि होती तो वह राजा से ऋण ले सकता था। सम्पन्न होने पर वापस दे देता था। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की कहावत अनुसार, उस समय राजा जैसा व्यवहार जनता ने भी किया। हर व्यक्ति भगवान के नाम पर अपने राज्य और धार्मिक कार्यों के लिए अपनी आय का 10वां भाग निकालता था।
महाराजा अग्रसेन जी का ही प्रभाव है कि आज भी अग्रवाल समाज शाकाहारी, अहिंसक, धर्मपरायण, उद्यमी, सहयोगकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित है। उस समय यज्ञ करना समृद्धि, वैभव और खुशहाली की निशानी माना जाता था। महाराज अग्रसेन ने बहुत सारे यज्ञ किए। एक बार यज्ञ में बलि के लिए लाए गए घोड़े को बहुत बेचैन और डरा हुआ पा उन्हें विचार आया कि ऐसी समृद्धि का क्या फायदा, जो मूक पशुओं के खून से सराबोर हो? उसी समय उन्होंने पशुबलि पर रोक लगा दी इसीलिए आज भी अग्रवंश समाज हिंसा से दूर ही रहता है। उनकी दण्डनीति और न्यायनीति आज प्रेरणा है उस संवेदनशून्य व्यक्ति और समाज के लिए, जो अपराधीकरण एवं हिंसक प्रवृत्तियों की चरम सीमा पर खड़ा है। व्यक्तित्व बदलाव का प्रशिक्षण अग्रसेन जी की बुनियादी शिक्षा थी। आज की शासन-व्यवस्थाएं अग्रसेन जी की शिक्षाओं को अपनाकर उन्नत समाज का निर्माण कर सकती हैं।
अग्रसेन जी ने राजनीति का सुरक्षा कवच धर्मनीति को माना। राजनेता के पास शस्त्र है, शक्ति है, सत्ता है, सेना है फिर भी नैतिक बल के अभाव में जीवन-मूल्यों के योगक्षेम में वे असफल होते हैं इसीलिए उन्होंने धर्म को जीवन की सर्वोपरि प्राथमिकता के रूप में प्रतिष्ठापित किया। इसी से नए युग का निर्माण, नए युग का विकास वे कर सके। उनके युग का हर दिन पुरातन के परिष्कार और नए के सृजन में लगा था। सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों के नए सन्दर्भ जुड़े परम्परा प्रतिष्ठित हुई। रीति-रिवाजों का स्वरूप सामने आया। सबको धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की पुरुषार्थ चतुष्टयी की सार्थकता दिखलाई।
महाराजा अग्रसेन जी सूर्य वंश में जन्मे। महाभारत के युद्ध में वे लगभग 15 वर्ष के थे। युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमन्त्रण भेजे गए। पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था। महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पाण्डवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिन्धकर वीरगति को प्राप्त हुए। इसके पश्चात अग्रसेनजी ने ही शासन की बागडोर सम्भाली। उन्होंने बचपन से ही वेद, शास्त्र, अस्त्र-शस्त्र, राजनीति और अर्थनीति आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया। उनका विवाह नाग सम्राट कुमुद की पुत्री माधवी से हुआ। महाराजा अग्रसेन ने ही अग्रोहा राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने कुशलतापूर्वक राज्य का संचालन करते हुए विस्तार किया तथा प्रजाहित में काम किए। वे धार्मिक प्रवृत्ति के पुरुष थे। धर्म में उनकी गहरी रुचि थी और वे साधना में विश्वास करते थे इसलिए उन्होंने अपने जीवन में कई बार कुलदेवी लक्ष्मी जी से यह वरदान प्राप्त किया कि जब तक उनके कुल में लक्ष्मीजी की उपासना होती रहेगी, तब तक अग्रकुल धन व वैभव से संपन्न रहेगा। उनके 18 पुत्र हुए जिनसे 18 गोत्र चले। गोत्रों के नाम गुरुओं के गोत्रों पर रखे गए।
महाराज अग्रसेन ने समाजवादी शासन व्यवस्था की स्थापना की जिसमें किसी भी व्यक्ति की कोई आर्थिक हानि होती तो वह राजा से ऋण ले सकता था। सम्पन्न होने पर वापस दे देता। इस सच्चे समाजवाद के जरिए महाराजा अग्रसेन ने समाज को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होने, परिश्रम करने और ईमानदारी से जीवन यापन करने का संदेश दिया। उनके जीवन का सबसे उत्कृष्ठ सिद्धान्त रहा मितव्ययता अर्थात थोड़े में गुजर बसर करना और भविष्य के लिए संग्रहित करना। वैज्ञानिक आज जलवायु पविर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए उपभोक्तावादी संस्कृति को जिम्मेवार मानते हैं, क्योंकि यह संस्कृति प्रकृति के अधिकाधिक दोहन का समर्थन करती है। परन्तु भारतीय सिद्धान्त मितव्ययता का मार्ग दिखाता है और कहता है कि प्रकृति से उतना ही लो जितना कि  जरूरी है। प्रकृति का दोहन होना चाहिए न कि शोषण। गांधी जी भी कहा करते थे कि धरती अपनी सारी सन्तानों का पेट तो भर सकती है परन्तु एक व्यक्ति के लालच को पूरा नहीं कर सकती। महाराजा अग्रसेन इसी सिद्धान्त के उपासक थे और शायद उन्होंने वर्तमान की चुनौती को युगों पहले ही ताड़ लिया। चूकवश आज मितव्ययता को कृपणता (कञ्जूसी) समझ लिया जाता है परन्तु ऐसा नहीं है क्योंकि यूं होता तो इस देश में चलने वाले आधे से अधिक सामाजिक कार्य महाराजा अग्रसेन जी के वंशजों के नाम पर न चलते होते। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ठीक कहते हैं कि देश के विभिन्न नगरों में चलने वाले स्कूल, धर्मशालाएं, अस्पताल, सामाजिक कार्यों के न्यास अग्रबन्धुओं के नाम से ही चलते हैं। अगर अग्रवाल समाज कृपण होता तो यह सम्भव नहीं होता।
महाराजा अग्रसेन जी ने राजनीति का सुरक्षा कवच धर्मनीति को माना। राजनेता के पास शस्त्र है, शक्ति है, सत्ता है, सेना है फिर भी नैतिक बल के अभाव में जीवन-मूल्यों के योगक्षेम में वे असफल होते हैं इसीलिए उन्होंने धर्म को जीवन की सर्वोपरि प्राथमिकता के रूप में प्रतिष्ठापित किया। इसी से नए युग का निर्माण, नए युग का विकास वे कर सके। महाराज अग्रसेन के राज की वैभवता से उनके पड़ोसी राजा बहुत जलते थे इसलिए वे बार-बार अग्रोहा राज्य पर आक्रमण करते रहते। बार-बार हार के बावजूद वे अग्रोहा पर आक्रमण करते रहे जिससे राज्य की जनता में तनाव बना ही रहता था। इन युद्धों के कारण अग्रसेन जी के प्रजा की भलाई के कामों में विघ्न पड़ता। लोग भी भयभीत और रोज-रोज की लड़ाई से त्रस्त हो गए थे। एक बार अग्रोहा राज्य में बड़ी भीषण आग लगी। उस अग्निकांड से हजारों लोग बेघर हो गए और जीविका की तलाश में विभिन्न प्रदेशों में जा बसे। उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोड़ी, वे सब आज भी अग्रवाल ही कहलाना पसंद करते हैं। आज भी वे सब महाराज अग्रसेन द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण कर समाज की सेवा में लगे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार देश के आयकर में अधिकतर भाग अग्रवंशियों का ही होता है। देश के उद्योगिक, वाणिज्यिक, व्यापारिक विकास और सकल घरेलू उत्पाद में अग्रवंशियों का अहम योगदान है।
प्रसन्नता की बात है कि देश में वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने महाराजा अग्रसेन जी के सच्चे समाजवादी सिद्धान्त के मर्म को जाना है। तभी तो देश में मेक इन इंडिया, कौशल विकास, स्टार्ट अप, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं जिससे देश में उद्यमशीलता व व्यापार को प्रोत्साहन मिला है। जीएसटी से एक राष्ट्र एक कर की व्यवस्था कर उद्यमियों की दशकों पुरानी मांग को स्वीकार किया गया है। ईज आफ डूइंग में भारत ने अपनी रेंकिंग में भारत ने आशातीत सुधार किया है। जिस दिन देश का सर्वांगीण विकास होगा उसी दिन महाराजा अग्रसेन जी के सपना साकार होगा और आशा की जानी चाहिए कि वह दिन जल्द से जल्द आने वाला है।
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वतंत्र विचार है। संपादक का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं।)
(स्तंभकार, अग्रवाल समाज के प्रबुद्ध चिंतक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। मोबाइल फोन न.98142 50660)

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