पंजाब का मौजूदा घटनाक्रम और पंजाब: सजग सतर्क रहें पंजाबी

       
                     -लेख/ राकेश शान्तिदूत(सम्पादक)
                       जागदा पंजाब टी वी 24 @ यू ट्यूब
अमृतसर जिला की देहात पुलिस के थाना अजनाला में पुलिस और ‘वारिस पंजाब दे’ नामक एक संस्था के मुखिया भाई अमृतपाल सिंह खालसा की समर्थकों सहित पुलिस से भिड़ंत, इस दबाव के बाद सन्दर्भित मामले के एक तथाकथित नामजद व्यक्ति लवप्रीत सिंह तूफान को दोषमुक्त करार देकर उसकी अविलम्ब रिहाई और सूबे के अति विवादित (केस की जांच को लेकर) महत्वपूर्ण सियासी-सामाजिक प्रकरण बहबल कलां और कोटकपूरा गोलीकांड में अति विलम्ब के पश्चात औचक,  तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, तत्कालीन गृह मंत्री सुखबीर बादल व तत्कालीन पुलिस प्रमुख सुमेध सैनी सहित अन्य को दोषी ठहराते हुए उन पर चार्जशीट दाखिल किये जाने की घटनाएं सूबे के सामान्य नागरिको के मन में कई किस्म के संशय और भय पैदा कर रही है। इसकी वजह सूबे के इतिहास में, सियासी वजह से पैदा किये गए हालातों से निकले परिणामों में नागरिकों का खुद साक्षी रहा होना है। सूबे के इस ऐतिहासिक काल में पंजाबियों ने क्या खोया क्या पाया, यह सर्वविदित है। कभी सूबे की मातृभाषा को धार्मिक पहचान में बांध कर, कभी सियासी गठबंधन के नाम पर सूबे की अटूट पंजाबी पहचान को हिन्दू -सिक्ख के रूप में प्रचारित कर ध्रुवीकरण की राजनीति किये जाने से पंजाब आज जिस खतरनाक मुकाम पर खड़ा है उसके आगे सर्वनाश ही है। वीरो जैसे गौरवमयी अलंकरण वाली जवानी की नई पहचान ‘नशेड़ी’ खत्म होती खेती , समाप्त होता धरती के नीचे का पानी, दूषित हुई पड़ी त्रि आब , बदतर स्थिति में उद्योग व्यापार, इस वजह से पैदा रोजगार की समस्या से बड़े पैमाने पर पंजाबियों की विदेशों की ओर हिजरत , सूबे की डेमोग्राफी को बदलने की साजिश की वजह से पंजाब की अपनी पहचान , अपनी संस्कृति, अपनी विरासत, बोली भाषा तक छिन्न रही है। दावे हम जितने मर्जी करें लेकिन पंजाब अब पंजाबियों का अपना रहता नही दिख रहा।
इस लेख के संदर्भित घटनाक्रम से जुड़े तमाम पक्षों की खामियां हालांकि आसानी से बताई जा सकती है, लेकिन आवश्यकता इन सभी पक्षों की नीयत, उद्देश्य, महत्वाकांक्षाओं और साजिशों को समझने की है। इतना मात्र कह देने से कि फलां व्यक्ति एजंसियों का प्लांट किया हुआ है,फलां लोक निर्वाचित सरकार गैर तजुर्बेकार हाथों में चले जाने की वजह से परीक्षा के शुरू होते ही फेल है इत्यादि इत्यादि आकलनों से पंजाब बचने वाला नही है। 1947 में देश विभाजन की विभीषिका का सबसे ज्यादा दर्द झेलने के बाद भाषा के आधार पर प्रदेशों के पुनर्गठन की केंद्रीय योजना तय होने के बावजूद बोली भाषा को धार्मिक या सामुदायिक पहचान देकर पंजाबियों को बांटने का षड़यंत्र रचकर पंजाब को माचिस की डिबिया जितना करके, राष्ट्रीय राजनीति में संख्या बल में कमजोर किये जाने के बावजूद देश का अन्न दाता बना रहा पंजाब आज कर्ज के बोझ तले दबा हुआ क्यों है, क्यों उस धरती माँ को त्याग कर इसे अन्य मुल्कों में हिजरत करनी पड़ रही है। यह यक्ष प्रश्न वर्तमान पीढ़ी के सामने खड़ा है। इसके लिए कौन लोग जिम्मेवार है? अन्नदाता होने के बावजूद पंजाब का औद्योगिक विकास इसके प्राकृतिक स्त्रोतों के विपरीत  करने की साजिश किसने रची और डेमोग्राफी बदलने की साज़िश से आने वाले कुछ वर्षों में पंजाब के कुदरती स्त्रोतों पर किस का डाका डलवाने के आधार कौन तैयार करवा रहा है। हमे यह समझना होगा कि मौजूदा हालात में घटे घटनाक्रम से जुड़े पक्षों में से किसे क्या फायदा पहुंच सकता है। मौजूदा हालातों में रची जा रही सियासी साजिशों  को हम इसलिए भी आसानी से समझ सकते है क्यूंकि साजिशकर्ताओं की रणनीति कोई ज्यादा आधुनिक नही है। नई साजिश के लिए हथियारो पुराने ही है और इनकी मार पंजाब पूर्व काल में भोग चुका है।
तथाकथित राष्ट्रवाद ,पड़ोसी दुश्मन से खतरा , हिंदूओं को सिक्खों से खतरे का कुटिल भम्र पैदा करने की कोशिश, ,खालिस्तान का भय आदि आदि नई साजिश के इन पुराने हथियारों से पंजाबियों को सचेत रहने की आवश्यकता है। बेशक पंजाब को भी बंगाल बिहार या उत्तर पूर्वी राज्यों की तरह अपने संवैधानिक अधिकार मांगने या उनकी प्राप्ति के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष करने ,बोली भाषा और पहचान पर गौरव करने और इसकी सुरक्षा के साथ अपने क्षेत्र के कुदरती अधिकारों के स्वामित्व का अधिकार है लेकिन किसी को इस अधिकार की मांग का मतलब राष्ट्रद्रोह निकालने की आज्ञा न तो पंजाब देगा और न ही इस साजिश को पंजाबी कभी कामयाब होने देंगे। किसान आंदोलन में पंजाबी एकता ने यह स्पष्ट संदेश दिया है। पंजाब को खुद के राष्ट्रप्रेमी या देश रक्षक होने का प्रमाण भी किसी को देने दिखाने की आवश्यकता नहीं है। मुग़लकाल से लेकर ब्रिटिश काल और फिर भारतीय लोकतंत्र में भी, वह चाहे सरहद सुरक्षा हो या इमरजेंसी में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान सुरक्षा के लिए संघर्ष का, पंजाबियों के दिये सर्वाधिक बलिदानों का स्वर्णिम और अतुलनीय अध्याय भारतीय  इतिहास में दर्ज है।  पंजाब की सर्वप्रथम और एकमात्र पहचान पंजाबी है और इसकी संस्कृति मानवता को एक नज़र से देखने के नजरिए से किसी सरहद में नहीं बंधी हुई। जुल्म के खिलाफ लड़ना पंजाब की विरासत और फितरत है। अलग अलग पूजा पद्दतियों में आस्था होने के बावजूद यह एक ओंकार के उपासक है और गुरुनानक दर्शन और गुरूवाणी से सीख लेने के नजरिये से सभी पंजाबी सिक्ख मत के हैं। इसलिए इन्हें अन्य धार्मिक या सामुदायिक पहचानों में बांधा ही नहीं जा सकता। निसंदेह पंजाब को अपना यह मूल तत्व जिंदा रखना है जुल्म और झूठ के खिलाफ खड़े होना है लेकिन मर्यादा हर वहीर का अहम अंग बनी रहनी चाहिए।  लेख के सन्दर्भित विषयों के संदर्भ में भी यह लागू होनी ही चाहिए । यदि किसी झूठ के खिलाफ संगत एक जुट होती है और सरकार इस झूठ पर पश्चाताप की स्थिति में स्वीकारोक्ति करने की मुद्रा में आ जाती है, तो निश्चय ही इसे उसकी नेतृत्व या शासनिक अपरिपक्वता ही कहा जायेगा।
पंजाब के मौजूदा सियासी घटनाक्रम पर प्रत्येक पंजाबी को सजग सतर्क नजर रखनी होगी और प्रतिक्रियात्मक रहना होगा । अपनी एकता ,देश के साथ अखंडता और बोली भाषा संस्कृति और विरासत पर पहरा देना होगा, तभी हम पंजाब को ‘साडा पंजाब – सोहणा पंजाब- जागदा पंजाब’ कह सकेंगे।
(ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਪੰਜਾਬੀ ਅਤੇ ਖੁਦ ਪੰਜਾਬੀ ਹੋਣ ਤੇ ਮਾਣ ਹੈ,ਲੇਖ ਹਿੰਦੀ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ਦਾ ਮੂਲ ਮੰਤਵ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਨੂੰ ਮੁਲਕ ਦੇ ਹਿੰਦੀ ਭਾਸ਼ੀ ਵੀ ਪੜ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਸਮਝ ਸਕਣ)

You May Also Like