गडकरी की बेबाकी में छिपा सत्य: 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था(भारत)मोनी और सोनी की जोड़ी की तरह हीअजीब

               विशेष सम्पादकीय लेख/राकेश शान्तिदूत

                       सम्पादक/ मेट्रो एनकाउन्टर

मोनी और सोनी की है जोडी अजीब, सजनी गरीब साजन अमीर। यह गीत 1974 में बनी बॉलीवुड की एक हिंदी फिल्म अमीर -गरीब का है। देवानंद और हेमामालिनी अभिनीत इस फ़िल्म का यह हिट रहा गाना बेशक फ़िल्म में दो प्रेमियों के बीच गाया गया हो लेकिन यह भारतीय समाज में अमीर और गरीब के बीच के अंतर को दृश्यांकित करने वाला है।

130 करोड़ की जनसंख्या वाले अपने भारत के प्रधानमंत्री जब यह बता रहे हो कि भारत सरकार को अपने 80 करोड़ गरीब नागरिकों को मुफ्त राशन देना पड़ रहा है तो यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि 1974 से वर्तमान समय तक देश में अमीर और गरीब में यह खाई कितनी  गहरी और चौड़ी हो चुकी है।
आप भी कहेंगे कि मैं क्या बातें लेकर बैठ गया फिल्मों की, अमीरी- गरीबी की लेकिन यह सच है और इस सच को सार्वजनिक मंच पर कहने की हिम्मत मोदी सरकार के एक मात्र दुस्साहसी मंत्री नितिन गडकरी ने दिखाई है। बस उन्होंने यह फर्क मोनी और सोनी में नही भारत के अमीर और गरीब पर गाया या फिल्माया नही परंतु रेखांकित जरूर किया है। गडकरी ने बीते ब्रहस्पतिवार को  नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत अमीर है
लेकिन अब सवाल यह खड़ा होता है कि जब देश युवा सूचना प्रसारण मंत्री से लेकर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 56 इंच के सीने तान कर कहते हो कि भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्थाओं में 5 पायदान पर पहुंच गया और इसकी गिनती ट्रिलियन डालरों में है तो फिर भारत के नागरिक भला गरीब कैसे हो सकते हैं। निसंदेह मामला मोनी और सोनी वाला ही है भले ही देश की जनता मोनी-सोनी साजन और सजनी की तरह भले ही एक हो लेकिन जब तक पैसा मोनी की जेब में ही हो तक मोनी का कैसे हो सकता है। हां मोनी के झांसा देने पर उसकी जेब के रुपयों को सोनी आधे अपने मान कर अपनी अर्थव्यवस्था के ठीक होने का भ्रम अवश्य पाल के रख सकती है।
बस यही बात हमारे देश का कोई आम व्यक्ति या महान व्यक्तित्व बेशक न समझना चाहता हो लेकिन नितिन गडकरी ने समझ भी ली है और उनके मुंह पर मार भी दी है जो देश के गिनती में दर्जन से भी कम लोगो की जेब में पड़ी दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था को भारत यानि इस देश के प्रत्येक नागरिक की बता कर झूठ के कुफ्र तोल रहे हैं। गडकरी ने कहा है कि देश में गरीब और अमीर के बीच की खाई निरन्तर चौड़ी होती जा रही है। यह अंतर सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह से बढ़ रहा है जो समाज की प्रगति के मार्ग में बड़ी बाधा है।
गौर करने योग्य है कि जब यह देश गरीब था तो इसके नागरिकों के टैक्स की राशि से देश का समग्र विकास होता था लेकिन अब उसे सड़क पर चलने के पैसे टैक्स से इतर देने पड़ते हैं। गरीबी के समय लगभग हर राशनकार्ड धारक को राशन डिपुओं से परिवार के सदस्यों की संख्या अनुसार प्रति व्यक्ति चीनी, मिट्टी का तेल और दालें आदि रियायती दरों पर मिलती थी,अमीर गरीब में कोई विशेष सामाजिक फर्क नही था अब गरीब के गले में नीला कार्ड डाल कर उसे राशन के नाम पर मुफ्त गले सड़े गेंहू तक सीमित कर दिया है जिसे वह पिसवाते खुद पैसे से है। बीच चौराहे पर इसे लेने के लिए गेहूं से भरे ट्रक के आगे लाइन में घण्टो  खड़े रह कर जलील अलग से होना पड़ता है। वास्तव में सरकार ने अमीर और गरीब दो वर्गों को कानूनी रूप से अलग चिन्हित कर दिया हैं। 
दुनिया की 5वी बड़ी इकोनमी का पैसा देश के चंद अमीरों के घरो में है और भारतीय लोक तंत्र का बादशाह आम आदमी इन अमीरों के कब्ज़े में पड़े धन बल से बनी सरकारों के आगे मुफ्त राशन की लाइन में भिखारी बने खड़ा है। यह स्थिति ख़तरनाक है और अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते गडकरी इस खतरे को भांप रहे हैं। सत्ता में शीर्ष जनप्रतिनिधियों को भी इसे भांप लेना चाहिए कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं।  ऐसा एक परिणाम  श्रीलंका में दुनिया देख चुकी है।
वैसे मोनी और सोनी की जोड़ी के प्रेम में भी यह मोनी के सोनी को बर्गर पिज़्ज़ा खिला देने से ही नही टिकता इसे स्थाई रूप देने के लिए तथाकथित प्रेम को विवाह में बदल कर मोनी की जेब के पैसे पर सोनी का कानूनी अधिकार तय करना ही पड़ता है। 5वी बड़ी इकोनामी में भी सिर्फ बर्गर या पिज़्ज़ा ( मुफ्त गेंहू ) से ही जनता और राजनीतिक दलों का प्रेम परवान चढ़ने वाला नही है। ऐसा माहौल, ऐसा प्रबंध करना होगा कि दीन दयाल उपाध्याय के अन्तोदय सिद्धान्त के अनुसार भारत में समाज के अंतिम व्यक्ति की भागीदारी देश क़्क़ अर्थव्यवस्था में तय हो सके।

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