कांग्रेस युक्त भाजपा/ विशेष संपादकीय

                         
                            राकेश शान्तिदूत
                   (सम्पादक, मेट्रो एनकाउन्टर)
सुनील जाखड़ के बाद विभिन्न जाति वर्ग से कांग्रेस के कई दिग्गज एक साथ भाजपा में शामिल हुए हैं। चंडीगढ़ में हुई हुआ यह प्रवेश केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भले ही न हुआ हो लेकिन इस दौरान उनकी ट्राइसिटी में उपस्थिति निसंदेह काबिले गौर है।  अमित शाह के चंडीगढ़ आगमन से पहले सोशल मीडिया पर इस प्रकरण को लेकर ‘अमित शाह हैं तो कोई गेम न हो ‘ जैसे जुमलों से सजी भाजपा स्पांसर्ड पोस्टो का मतलब आसानी से समझा जा सकता है कि भले ही अमित शाह इस प्रकरण में सार्वजनिक न हुए हो लेकिन यह पोस्टें इस शमूलियत के सूत्रधार होने का श्रेय लेने की उनकी गेम का अंश जरूर है। वैसे पाकिस्तानी पत्रकार अरूसा से दोस्ती और उनके लम्बा संमय भारत में ही टिकने की चर्चाओं में घिरे केप्टन अमरेंद्र को मुख्यमंत्री पद से उतारने के लिए कांग्रेस के मजबूर किये जाने से पहले ही,  पंजाब की सुरक्षा के संदर्भ में आये उनके बयानों से लेकर अब तक की पंजाब की राजनीति में,  कांगेस दिग्गजों की भाजपा में शमूलियत , भाजपा के चाणक्य की पंजाब को लेकर बिछाई गई राजनीतिक बिसात की निर्णायक चाल लगती है।
अन्ना आंदोलन से उपजे हालात में देश के पास कांग्रेस का विकल्प ढूंढने की मजबूरी में, राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर एक मात्र राष्ट्रीय दल के रूप में  भाजपा की उपलब्धता ठीक उसी तरह की थी जैसे दिल्ली में नवगठित आम आदमी पार्टी की।मौजूदगी। सम्भवतः इसी को भांपते हुए मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा इस लिए दिया कि कांग्रेस की गैर मौजूदगी में भाजपा एक मात्र विकल्प लंबे समय तक बनी रहेगी। आप के बढ़ते कदमों के बावजूद एक हद तक वह इस में सफल भी दिख रहे हैं। निःसन्देह कांग्रेस अब मात्र कुछ राज्यों में सिमट कर रह गई है और  उसकी अन्तरकर्लह भारत को लगभग कांग्रेस मुक्त करती दिख रही है। पंजाब में कांग्रेस दिग्गजों का पार्टी छोड़ कर भाजपा के आंचल में चले जाना भी फिलहाल ऐसा ही प्रभाव दे रहा है। हालाँकि यह दिग्गज ऐसे हैं जिन्हें पंजाबियों द्वारा चुने गये नए विकल्प आप के उम्मीदवारों को भारी जीत दिला कर वोटरों ने लाखों मतों से नकारा है। पंजाब विधानसभा के हालिया चुनावों में अकालियों के बिना कांग्रेस और अकाली दल से निकले बूढे घोड़ो पर चुनाव लड़ी भाजपा सरकार बनाने के अपने सपनों के टूटने के साथ मात्र  2 प्रतिशत वोट ही ले पाई है। पंजाब में पंथक राजनीति के सामने निरपेक्ष धारा के रूप में दशकों से कांग्रेस पंजाबी हिंदुओं ,दलितों और सिखों की पार्टी बनी आई है। विधानसभा चुनाव में जाट बनाम अन्य के ध्रुवीकरण की अपनी रणनीति में बुरी तरह विफल होने के बाद भाजपा निश्चय ही यह समझ गई है कि देश के अन्य राज्यों की तरह पंजाब की सांझी विरासत की वजह से यहाँ ध्रुवीकरण की राजनीति उसे सत्ता नही दिला पाएगी। अतः उसे यहां कांग्रेस का विकल्प बनने के लिए अपना कांग्रेसीकरण करना ही होगा। पूरे देश में मोदी की आंधी के दावे के बावजूद  पंजाबियों पर मोदी का जादू नही चल पाया। यहां तक कि देश भर में बिखर रही कांग्रेस को पंजाबियों ने 2017 में कैप्टन अमरिन्दर के नेतृत्व वाली कांग्रेस के हाथ  और अब 2022 आप को सूबे की कमान थमा दी है। शायद यही वजह है कि वह अपने कांग्रेस मुक्त अभियान के बावजूद खुद को कांग्रेस युक्त कर रही है। हालाँकि कांग्रेस का प्रारूप बनने का फार्मूला वह कांग्रेस में सेंधमारी के बिना भी यहां की सामाजिक रचना के अनरूप खुद को ढाल कर बना सकती थी लेकिन शायद उसे अपने स्थानीय नेतृत्व की रगों में वह शक्ति महसूस नहीं हो रही। इसीलिए दुनियाँ की सबसे बड़ी पार्टी होने का दम भरने वाली भाजपा को  पंजाब जैसे सूक्ष्म सूबे में कांग्रेस के नकारे जा चुके बूढे घोड़ों पर दांव खेलना पड़ रहा है। यह स्थिति पंजाब में भाजपा के कैडर कार्यकर्ता के लिए बड़ी असहज है जो वर्षो से भाजपा के अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने  की स्थिति को खुद के लिए एक अवसर के रूप में ले रहा है।
 इस प्रकरण में  कांग्रेस के पूर्व मंत्रियों और विधायकों के भ्रष्टाचार की फाइलें पंजाब के नए मुख्यमंत्री को सौंपने की अपेक्षा अमित शाह को सौंपने का जो संदेह कैप्टन अमरेंद्र पर किया जा रहा है उससे यह बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि कांग्रेस युक्त होने से भाजपा सशक्त हुई है या इस में आने वाले दिग्गज सुरक्षित हुए है। कभी पार्टी विद ए डिफरेन्स होने का दावा करने वाली, पंजाब विधानसभा चुनाव में  कैप्टन अमरिन्दर के बूढे कंधों का सहारा लेने के बावजूद अपना हश्र देख चुकी भाजपा पुनः माया मिली न राम वाली स्थिति में क्यों जाना चाहती है यह तो इसके रणनीतिकार ही बता सकते हैं। बंगाल में यह फार्मूला फेल हो चुका देखने के बावजूद भाजपा का यह कदम कांग्रेस मुक्त भारत की इसकी सनक से प्रेरित लगता है भले ही इसे इसके लिए खुद को कांग्रेस युक्त ही क्यों न होना पड़े।

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