रक्षाबंधन का वास्तविक अर्थ,श्री श्री रविशंकर की व्याख्या

* बताया, रक्षाबंधन एक दूसरे को आश्वासन देने का उत्सव, देखो, में तुम्हारे साथ हूँ

बंगलुरू/मेट्रो ब्यूरो

रक्षाबंधन के पावन पवित्र त्योहार पर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक संचालक और विश्वविख्यात आध्यत्मिक एवं योग गुरु श्री श्री रविशंकर ने  आमजन के मार्गदर्शन के लिए इस पर्व के औचित्य और अर्थ की व्याख्या की है।

बकौल श्री श्री रक्षाबंधन वह बंधन है जो आपकी रक्षा करता है। इस बंधन के द्वारा किसी उच्चतर स्थिति के लिए आपकी रक्षा की जाती है। जीवन में बंधन आवश्यक है। लेकिन बंधन किससे?

ज्ञान, गुरु, सत्य और आत्मा के साथ आपका बंधन; ये सभी आपकी रक्षा करते हैं। जैसे एक रस्सी से आपकी रक्षा भी हो सकती है अथवा आपकी जान भी ली जा सकती है, वैसे ही सामान्य सांसारिक बातों में डूबा छोटा मन आपको जकड़ सकता है, किंतु विशाल मन, ज्ञान आपको बचाता है, आपको मुक्त करता है।

तीन प्रकार के बंधन
बंधन तीन प्रकार के होते हैं: सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक बंधन आपको ज्ञान, सुख और आनंद से जोड़ता है। राजसिक बंधन आपको सभी प्रकार की इच्छाओं और लालसाओं से जोड़ता है। तामसिक बंधन में आनंद नहीं होता लेकिन फिर भी आप किसी तरह का जुड़ाव महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो धूम्रपान की आदत का शिकार है, हो सकता है कि उसे इसमें कोई खुशी न मिलती हो, लेकिन फिर भी उसे छोड़ना मुश्किल लगता है। रक्षाबंधन को एक सात्विक बंधन कहा जाता है जिसके द्वारा आप स्वयं को ज्ञान, प्रेम व सभी के साथ बांधते हैं।

इस दिन भाई-बहन अपने बंधन की पुष्टि करते हैं। बहनें अपने भाइयों की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं। बहन के प्रेम और उदात्त भावों से स्पंदित होने वाले इस धागे को ही ‘राखी’ कहा जाता है। बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन को विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में राखी, बालेवा और सालुनो के रूप में भी जाना जाता है।

रक्षाबंधन की कहानियां

राखी बांधने की परंपरा का उल्लेख विभिन्न भारतीय पौराणिक कथाओं में मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार दानव राजा बलि भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। भगवान विष्णु ने वैकुंठ में अपना निवास छोड़कर राजा बलि के राज्य की रक्षा करने का कार्य संभाला था। देवी लक्ष्मी अपने स्वामी के साथ वैकुंठ में अपने निवास में रहने की कामना करती थीं।

वह अपने पति के वापस आने तक शरण लेने के लिए एक ब्राह्मण महिला के वेश में राजा बलि के पास चली गईं। राजा बलि ने उन्हें शरण दी और अपनी बहन की तरह उसकी रक्षा की।

श्रावण पूर्णिमा समारोह के दौरान, देवी लक्ष्मी ने राजा को पवित्र सूती धागा बांधा। उनके इस भावना पूर्ण कृत्य ने बलि के हृदय को छुआ, राजा ने उसे एक वर देने की प्रतिज्ञा की और कहा कि वह कुछ भी मांग सकती हैं। वरदान मिलने पर, देवी लक्ष्मी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया। राजा उसकी सद्भावना और उसके उद्देश्य से प्रभावित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु से उनके साथ वैकुंठ वापस जाने का अनुरोध किया।

इस प्रकार भारत के कुछ हिस्सों में, त्योहार को बालेवा भी कहा जाता है जो राजा बलि की भगवान विष्णु और अपनी बहन के प्रति समर्पण का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि तब से श्रावण पूर्णिमा में बहनों को धागा बांधने की रस्म या रक्षा बंधन के लिए आमंत्रित करने की परंपरा रही है।

हालाँकि अब राखी को भाइयों और बहनों के लिए एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है, ऐसा सदा से नहीं था। इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं जिनमें राखी विभिन्न संदर्भों में सुरक्षा का प्रतीक है। इसे पत्नी, पुत्री या माँ द्वारा बांधा जा सकता है। ऋषियों ने आशीर्वाद लेने आए लोगों को राखी बांधी। संतों ने अपने को बुराई से बचाने के लिए पवित्र धागे को स्वयं को बांधा। शास्त्रों में वर्णित है कि यह ‘पाप तोड़क, पुण्य प्रदायक पर्व’ के रूप में या उस दिन के रूप में, जो वरदान देता है और सभी पापों को समाप्त करता है, मनाया जाता है।

जब हम समाज में रहते हैं, तो आपस में सदा कुछ तर्क, गलतफहमियाँ, विचारों में अंतर होता है और ये सब तनाव, असुरक्षा और भय पैदा करते हैं । जब समाज भय में जीता है तो उसका विनाश होना निश्चित है। जब एक परिवार के सदस्य एक-दूसरे के भय में रहते हैं, तो परिवार का विनाश हो जाता है। इसलिए रक्षा बंधन एक दूसरे को आश्वासन देने का उत्सव है, “देखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ”।

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