विशेष लेख/ भाजपा (जनता) की विधानसभा, कमजोर अभिनय,अधूरा मंचन, 

                          राकेश शान्तिदूत/संपादक
जनता की विधानसभा। कांग्रेस, अकाली दल के मिक्सचर वाली भाजपा की पंजाब इकाई का एक अच्छा प्रयास है। यूं तो भारतीय लोकतंत्र में लोकसभा की तरह देश के हर सूबे की विधानसभा जनता की विधानसभा ही है लेकिन  पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद पंजाब विधानसभा की  कार्यप्रणाली की वजह से यह किसी जनता की सभा न रह कर किसी पार्टी विशेष की सभा सी बन कर रह गई दिखती है।
विधानसभा के एक सत्र के आयोजन पर करोड़ों रुपये का खर्च आता है और यह जनता के टैक्स से आया पैसा होता है। इसलिए इस में जब जनता से संबंधित मुद्दों की अपेक्षा सत्ता रूढ़ पार्टी की ब्रांडिंग के ही खेल दूसरे दलों को बिना वजह बदनाम करने के लिए खेले जायें तो विधानसभा , विधानसभा न रह कर किसी पार्टी विशेष का शोकेस होकर ही रह जायेगी।
पंजाब विधानसभा की इस हालत के लिए आज के विपक्षी और पूर्व समय के सत्तारूढ़ सियासी दल भी जिम्मेवार हैं। क्योकि यह स्थिति उनके द्वारा पंजाब की जनता का बुरी तरह से  विश्वास खो देने की वजह से ही हुई है। इसीलिए तो बिना किसी उपलब्धि के, उपलब्ध गैर आजमाया विकल्प , आम आदमी पार्टी, 117 सदस्यीय विधानसभा में 92 सीटों के बहुमत के साथ बैठी है।
लेकिन जो आम आदमी पार्टी अपनी जीत से पंजाब में आम जनता का शासन आने की बात कह रही थी अब , अब तक केअपने शासन के सात महीनों में आम जनता को यह फीलिंग नही दे पाई। शायद यही  वजह है कि आम जनता में इसके अधिकतर विधायक अपना विश्वाज़ खो रहे हैं, सूबे के लॉ एंड आर्डर की स्थिति, विधायकों के  आम जनता के प्रति तल्ख व्यवहार और इस वजह से उन पर कई प्रकार के दोषारोपण, इसी व्यवहार की वजह से कार्यपालिका के मनोबल में गिरावट इत्यादि कई कारण है जो जनता की विधानसभा, सूबे की सवैंधानिक विधानसभा के समानान्तर लगने की नौबत ले आये हैं।  यह परिस्थिति सत्तारूढ दल में निर्वाचित हुए अधिकतर न्यू कमर विधायकों के अनुभव की कमी से जुड़ी हुई भी मानी जा सकती है लेकिन सीखने की ललक या सूबे की सही मायनों में सेवा या विकास का अपना चुनाव पूर्व  संकल्प भी सिवाय करोड़ों रुपये की इश्तिहारबाजी में गर्क करने के आम आदमी पार्टी द्वारा चलाई जा रही पंजाब सरकार निर्वाचित होने के बाद  व्यक्त नही कर सकी।
निसंदेह जनता की पीड़ा को समझते हुए भाजपा ने कम से कम भड़ास निकालने के लिए जनता की विधानसभा  नामक  मंच  जनता को उपलब्ध करवाने का प्रकटीकरण किया है लेकिन जनता की यह विधानसभा भी अपने नाम के अनुरूप प्रभाव नही दे सकी। सार्वजनिक स्थलों , धर्मशालाओं, मैदानों ,पार्को या मोहल्ले के चौराहों की बजाए विशेष परिसरों में इसका आयोजन भी मात्र भाजपा के पुराने और “काबिल” नेताओं के अलावा अपना अस्तित्व बचाने के लिए दूसरे दलों से आये इनके नए सजाए दूल्हों के भड़ास निकलने के लिए एक मंच प्रदान करना मात्र है। महंगे होटलों के परिसरों के दायरे में सीमित जनता की इन विधानसभाओं में जनता कहीं नही है। इसीलिए जनता से जुड़े मूलभूत लोक मुद्दों या समस्याओं पर चर्चा करने की अपेक्षा मीडिया को आकर्षित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और पुराने घिसे पिटे फार्मूले पर पंजाब के खतरे में होने की पारम्परिक राजनीति की गई। पंजाब की क्षेत्रीय पहचान पर खतरे, बदलती डेमोग्राफी आदि के मुद्दों को छुआ तक नही गया।
 आयोजन की व्यवस्था में खामियां या विधानसभा के प्रारूप में त्रुटियां भले ही भाजपा का आंतरिक मामला कहा जा सकेगा लेकिन आम जनता ( मोहल्ला कमेटियां या गैर सरकारी संगठनों) को इसमें प्रतिनिधित्व न मिलना इस आयोजन को जनता की विधानसभा की अपेक्षा भाजपा की विधानसभा या इसके कार्यकर्ता सम्मेलन के दायरे में ही सीमित रखेगा। आम आदमी पार्टी या उनके टिकट पर निर्वाचित विधायक बेशक अभी अनुभवहीन है लेकिन भाजपा का नया मिक्सचर तो मंझा हुआ है।
पंजाब की वर्तमान परस्थिति में भाजपा के इस प्रयास का स्वागत  किया जाना चाहिए लेकिन इसे मात्र पार्टी का एक इवेंट बनाने की अपेक्षा इसे किसी पार्टी का टैग रहित अभियान ही इसकी वास्तविक परिकल्पना को साकार करेगा । अभी तो इसका मंचन भी  अधूरा है।

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