*भाजपा की स्थिति सांप के मुंह मे छिपकली सरीखी, न समर्थन की स्थिति में न विरोध।
जालन्धर/मेट्रो ब्यूरो
सिक्ख स्टूडेंट फेडरेशन के पूर्व प्रधान और अकाली दल छोड़ कर भाजपा में प्रवक्ता नियुक्त हुए हरिंदर सिंह काहलों की किसानों के प्रति प्रकट दबंगई के बाद किसानों द्वारा उनके घर पर गोबर फैंक प्रचंड प्रदर्शन से भाजपा सकते में है। उसकी स्थिति साँप के मुंह में छिपकली सरीखी है। वह न तो इस बयान का समर्थन कर सकती है और न ही काहलों का विरोध। काहलों की पार्टी में हाई लेवल शमूलियत करवाते हुए भाजपा इसे एक बड़ी सियासी उपलब्धि मान रही थी लेकिन अब भाजपा नेताओं को सांप सूंघ गया दिखता है।
दरअसल भाजपा नेतृत्व के किसी भी स्तर पर या सरकार की तरफ से, नए केंद्रीय कृषि कानूनों के विरुद्ध साल भर से संघर्षरत किसान जत्थेबंदियों या किसानों के विरुद्ध इतनी सख्त और हिंसक मानसिकता वाली भाषा का प्रयोग अब तक नही किया गया, हालतवश प्रदर्शन कार्रवाई की बात अलग हो सकती है लेकिन काहलों ने जिस भाषा का प्रयोग जालन्धर में पार्टी कार्यालय में अधिकृत पार्टी मंच पर जिला जालन्धर भाजपा शहरी अध्यक्ष सुशील शर्मा और पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार मनोरंजन कालिया और अन्य की हाजरी में किया उसने बड़ा सवाल खड़ा किया है।
सवाल यह है कि पार्टी मंच पर पार्टी प्रवक्ता द्वारा किसानों को लाठियां भांज कर जेलों में बंद करने का समय आने की बात कहना क्या पार्टी की भाषा है या उसकी अपनी। काहलों के वक्तव्य के पश्चात न तो कालिया ने और न ही किसी अन्य ने इसे काहलों की न तो निजी राय कहा और न ही इसका पार्टी की ओर से खण्डन किया अपितु निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उसको सम्मानित किया गया।
इस बयान के बाद किसानों के बवाल के बाद भले ही भाजपा के तमाम नेता बात करने से कतरा रहे हों या ऑफ दी रिकॉर्ड इसे काहलों का निजी बयान कह कर बचने की कोशिश में हों लेकिन पार्टी प्रवक्ता के रूप में पार्टी मंच पर काहलों की कही निजी बयान की श्रेणी में नही रखी जा सकती। मेट्रो ने भाजपा के प्रदेश स्तरीय कई नेताओं से बात की लेकिन सब विषय सुन कर कतराते रहे। हालांकि भाजपा के दर्जन भर प्रवक्ताओं में से एक वसीम रज़ा ने मेट्रो से वार्ता में यह अवश्य कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को बोलते समय ध्यान रखना चाहिए लेकिन काहलों ने कुछ गलत कह भी दिया तो किसानों को शांतमय विरोध करना चाहिए था।
बहरहाल इस घटना से जहाँ भाजपा के विरुद्ध किसानों की खिन्नता बड़ी है वही भाजपा भी धर्म संकट में है। अब यदि भाजपा काहलों के मामले में किसानों की प्रतिक्रिया पर काहलों के समर्थन में नही आती तो जिस उद्देश्य से या जिस समुदाय को पार्टी की ओर काहलों के बूते आकर्षित करने की कोशिश की गई है, उसके फलीभूत होने के मार्ग में बाधा उतपन्न हो सकती है और यदि काहलों की पीठ ठोकती है तो किसान की नाराजगी अधिक तीव्र होती है, क्योकि भाजपा प्रवक्ता का बयान करनाल के एस डी एम से काफी मिलता जुलता है।
इस घटना से भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओ में उन नेताओं के प्रति रोष है जो काहलों को भाजपा में लाने में शामिल रहे है। काहलों जालन्धर-35 सेंट्रल विधानसभा के अंतर्गत आते रामामंडी के निवासी है। यहाँ से पिछली बार पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता भारी मतांतर से पराजित हुए थे।