विशेष आलेख/राकेश शान्तिदूत
शिरोमणि अकाली दल के मुखिया सुखबीर बादल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पागल सरीखा यानि पागल जैसा व्यक्ति कहा है। भगवंत मान ने बादल के इस बयान पर उस प्रकार से टिप्पणी नही की जिस प्रकार की टिप्पणियां आज कल सियासी परम्परा सी बन गई है परंतु उन्होंने मुख्यमंत्री पद का मान और सियासी शालीनता के दायरे में रह कर कहा कि वह राजनीति में सेवा के लिए आये है ना कि लूटने के लिए। समझने वाले , मान के इन बोलो को समझ ही गये है कि वह किस के लिए और क्यों कहे गए है।
बेशक, पंजाब के अवाम के किये, प्रचंड सत्ता परिवर्तन से सत्तारूढ़ हुई आम आदमी पार्टी को विपक्षी दल, और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग बर्दाश्त न कर पा रहा हो लेकिन जालन्धर लोकसभा के उपचुनाव में किसी ढंग से भी हो उसने अपने हक़ में जनविश्वास के बने होने को जबरदस्त जीत से साबित किया है और वर्तमान की राजनीतिक सभ्यता या संस्कृति में संख्यान्तर और जीत को ही जनविश्वास के प्राप्त होने का पैमाना माना जा रहा है। हैरानीजनक तो यह भी है कि बहुमत से भी कहीं ऊपर के जनादेश से बनी सरकार को उसके कार्यकाल के पहले दिन से ही उसको विफल बताने वाले वह सियासी दल है जिनके 10 व 5 साल के शासनकाल के क्रियाकलापों से रुष्ट होकर पंजाबियों ने उनके विरुद और आम आदमी पार्टी के पक्ष में जनादेश दिया है। पंजाब के हितों के प्रति यह दल यदि अपने शासनकाल में ही जाग्रत रहते तो सम्भवतः उन्हें आज इस नमोशी का सामना न करना पड़ता।
सही मायनों में बादल कुनबा पंजाब और पंथ दोनो का विश्वास खो चुका है । ईस वजह से पंजाब में उपलब्ध एक मात्र बड़ी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल अब हाशिये पर है और पंजाब के क्षेत्रीय हितों या समस्याओं की लड़ाई लंबे समय यथावत खड़ी है। पंजाब में कोई अन्य मजबूत क्षेत्रीय सियासी दल बन नही पाया और अकाली दल भी सत्ता के लोभ में राष्ट्रीय पार्टी भाजपा की छाया में जाकर भी संविधान प्रदत पंजाब के अधिकारों की सुरक्षा नही कर पाया। दरियाई पानी, चंडीगढ़, पंजाबी भाषी इलाको की पंजाब में वापिस शमूलियत और आनंदपुर प्रस्ताव (प्रदेशो को अधिक अधिकार देने की वकालत करता केंद्र से हुआ करार) आदि – आदि मुद्दों के अलावा पंजाब में डेमोग्राफिक परिवर्तन , कम होती खेती योग्य भूमि, बेरोजगारी, उद्योग, व्यापार , गिरता भू जल स्तर, प्रदूषण, नशा और कैंसर की बीमारी इत्यादि समस्याएं मुंह बाए खड़ी है।
बेशक पंजाब की सियासी क्रिकेट की पिच पर जैसी हार्ड हिटिंग भगवन्त मान कर रहे है वह आम नागरिक को आकर्षित करती है और उन्हें एक नायक के रूप में फिलहाल स्थापित करती है। खासकर भ्रष्टाचार में किसी भी बड़े से बड़े व्यक्ति को न बख्शने और मुफ्त में बिजली पानी लेने के मामले में तो पंजाब की जनता अभी मान की पीठ ठोंकती दिखती है और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि इन्ही सब कारणों से तो इसने आम आदमी पार्टी के हक में जनादेश दिया है। लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है।
मान सरकार के लिए बड़ी चुनौती है पंजाब की भावनाओं के अनुसार उपरोक्त समस्याओं के हल सहित जमीनी स्तर के भ्रष्टाचार को खत्म करना, पंजाब को कर्ज से मुक्त करना, खजाने के पैसे को विज्ञापनबाजी में उड़ाने को रोकना (कोई भी सरकार जो देश या प्रदेश के लिए जो भी कार्य कर रही हो उन्हें जनता खुद देख महसूस कर रही होती है, उसके लिए उपलब्धियां गिनवाने के लिए उसी प्रकार से विज्ञापन नशर करने की जरूरत नही होती जैसे पगड़ी, टोपी पहन कर या तिलक लगा कर किसी समाज के साथ अपने रिश्ते प्रगाढ़ होने को साबित नही किया जा सकता।
भगवन्त मान के लिए तो सब से बड़ी चुनौती तो यह है कि वह इस प्रभाव से अपनी सरकार को मुक्त रखे कि पंजाब से जुड़े मुद्दों पर निर्णय अन्य राष्ट्रीय दलों की भांति उनके केंद्रीय नेतृत्व की सियासी अनिवार्यताओं के दबाव में नहीं है अपितु खुद पंजाब के निर्वाचित प्रतिनिधि पंजाब के सियासी नरेटिव के अनुसार फैसले ले रहे हैं।
यदि वास्तव में भ्रष्टाचार के विरुद भगवंत की जंग किसी सियासी उद्देश्य से प्रेरित न होकर किसी विशेष वर्ग के विरुद्ध नही अपितु समूचे भ्रष्टाचारी समूहों के खिलाफ है तो सत्ता और सियासत के भीतर ऐसे फैसले जो व्यवस्था को सकारातमक भाव से बदलने के उद्देश्य से जाए तो यह जुर्रत ‘ऐसे पागल’ ही कर सकते है जैसा सुखबीर ने मान को बताया है। ऐसे पागल ही निडर होकर पुनः सत्ता में लौटने की लालसा से मुक्त, व्यवस्था को सही दिशा देने का दुस्साहस करते है। अब यह मान को साबित करना है कि वह कौन से पागल है।
विपक्षियों को भी यह हमेशा ध्यान में रखन चाहिये इस पागल को मुख्यमंत्री बनाना या आम आदमी पार्टी को सूबे की समूची सत्ता सौंपने का जो पागलपन पैदा हुआ था ,वह विपक्ष के 15 साल के निरन्तर शासन के प्रति निराशा और हताशा से ही उपजा है। भगवंत को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि वह सुखबीर के दिये अलंकरण को लेकर कहीं उन पर मानहानि का मुकद्दमा करने ना चल पड़े, क्योंकि यह एक विश्वास गंवा चुके नेता की निराशा और हताशा से निकला सम्मानजनक अलंकरण है।
वैसे भी यमले, पगले और दीवाने .. ही किसी हद्द से गुजरते है और यह ‘पागल जिहा. मुख्यमंत्री कौन सी हदों से गुजर जाने की ठाने बैठा हैं यह वक्त ही बताएगा।